आत्म-कल्याण और आत्म-संतोष के लिए ज्ञानी पहले बात तो संसार छोडने की, निवृत्ति
की, विरक्ति की,
संयम की ही कहते हैं, संसार न छूटता हो तो प्राप्त में
संतोष मानने को कहते हैं,
यह संतोष भी न हो और अभी भी प्राप्त करने की अभिलाषा हो तो मर्यादा
बांधने का तीसरा रास्ता भी ज्ञानियों ने फरमाया है। इन तीन के अलावा शान्ति की ओर अग्रसर
होने का अन्य कोई रास्ता नहीं है।
सागर की भी मर्यादा है। मर्यादा छोडता है वह सागर तो दुनिया को डुबोता है। आप यदि
मर्यादा छोडो तो आप भी अपने आपको एवं दूसरे कई को भी डुबो देते हो। मनुष्यत्व से हीन
मनुष्य सबसे अधिक भयंकर है। मनुष्य योजना-पूर्वक जितना पाप कर सकता है, उतना
पाप दुनिया का कोई भी प्राणी नहीं करता है। मनुष्य यदि अच्छा बनेगा तो देव, किन्तु, यदि मनुष्यत्व
भी गंवा देता है तो वही मनुष्य राक्षस कहलाता है।-सूरिरामचन्द्र
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