किसी की अनुकूलता में बाधक न बनने
और हमको जो प्रतिकूल हो,
ऐसे व्यवहार का दूसरों
के प्रति आचरण न करने के लिए सबसे पहली बात है कि हम पर-पदार्थों को अपना मानना
छोड दें। समझ लीजिए कि जो कुछ आप देख रहे हैं, वह
सब ‘पर’ हैं
और आप इनसे ‘पर’ हैं।
जब तक इन दृष्टव्य भौतिक पदार्थों से मेरी आत्मा दूर नहीं होगी, तब तक मेरी आत्मा आधि, व्याधि
और उपाधि से बच नहीं पाएगी। भौतिक पदार्थ भी इच्छा करने या प्रयत्न मात्र से नहीं
मिल जाते, क्योंकि मैं चाहे कितनी भी चाहना
करूं या उन्हें पाने के लिए कितने ही प्रयत्न करूं, वे
मिल ही जाएं यह जरूरी नहीं,
क्योंकि वे भाग्याधीन
हैं। ऐसे पदार्थों के पीछे जीवन बर्बाद करना और जो मेरा है, उसे भूल जाना, यह
निरी मूर्खता है। जो मेरा है, उसका प्रादुर्भाव तब
होगा जब मैं पर से मुक्त बन जाऊं।
इस प्रकार स्व-पर का विवेक करने के
बाद स्व को उन्नत बनाने की कोशिश कीजिए। अनंतज्ञानियों द्वारा बताए गए मार्ग का इस
प्रकार अनुसरण कीजिए कि किसी भी संयोग में जो अपने को प्रतिकूल व्यवहार है, उसका आचरण किसी के प्रति न हो। इस प्रकार यथासंभव
सबके अनुकूल बतार्व का प्रयत्न शुरू होगा तो जीवन में हिंसा की जगह अहिंसा का आगमन
होगा, असत्य की जगह सत्य आएगा, अनीति का स्थान नीति ले लेगी, विषय-विलास
की जगह विषय-वैराग्य का प्रादुर्भाव होगा, पर-पदार्थ
की मूर्च्छा जाएगी और दुनिया की वस्तुओं के प्रति जो ममत्व बुद्धि है, वह खत्म हो जाएगी।
इससे क्रोध की जगह क्षमा, मान की जगह मृदुता, माया
के स्थान पर सरलता और लोभ के स्थान पर संतोष आएगा। इसके साथ वैराग्य, समभाव आएगा और कलह-क्लेश का नाम भी नहीं रहेगा। किसी
पर आरोप लगाना, चुगली करना, सांसारिक सुख के पदार्थों के वियोग के कारण हर्ष-शोक
करना, पर-निंदा की बुरी आदत इत्यादि पाप
खत्म हो जाएंगे। जीवन में धर्म आने लगेगा और अठारह प्रकार के पाप अपने आप जाने
लगेंगे। ऐसी आत्मा कभी किसी के लिए दुःखरूप नहीं बनेगी या किसी को दुःखी नहीं
बनाएगी।
जिसके जीवन में धर्म नहीं है, उसको शान्ति तो नहीं ही मिलेगी, वह दूसरों के लिए भी शापरूप बन जाएगा। इस बात का
विचार करके, धर्म को अपना साथी बनाने का आपको
प्रयत्न करना होगा। जो पुण्यात्माएं धर्म को साथी बनाकर अपना जीवन जीने का निर्णय
करेंगी, वे इस भव में भी सुख और शान्ति का
अनुभव करेंगी और पर-भव को भी सुधारकर अन्ततः परम् शान्ति को प्राप्त कर सकेंगी।
सभी इस प्रकार का वर्तन करें और परम् शान्ति को प्राप्त करें, यही शुभेच्छा है।-सूरिरामचन्द्र
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