मोक्ष का अर्थ क्या है?
आत्मा कर्म के योग से सर्वथा मुक्त बने, यही
न? यदि कर्म का योग ही न हो तो मोक्ष-प्राप्ति की बात ही नहीं उठती, अर्थात्
मोक्ष तत्त्व को मानने की जरूरत ही नहीं रहती। जो आत्मा की मोक्षपर्याय को मानते
हैं, उन्हें आत्मा के साथ कर्म के योग को मानना पडता है। यह कर्म का योग ही आत्मा
की मोक्ष पर्याय को प्रकट करने में बाधक है, यह मानना पडता है। वैसे तो
जीव और अजीव,
ये दो प्रकार के ही तत्त्व इस जगत् में विद्यमान हैं। किसी
भी वस्तु का जब स्वतंत्र रूप से विचार करते हैं तो प्रतीत होता है कि या तो वह जीव
है या अजीव है।
ये दोनों तत्त्व किसी के द्वारा रचित हैं या अरचित ही हैं? जीव
या अजीव को किसी ने बनाया है क्या? नहीं! यदि जीव या अजीव को
किसी ने पैदा किया हो तो वह पैदा करने वाला जीव है या अजीव? यदि
उत्पन्न करने वाला जीव था,
तो जीव का अस्तित्व (पूर्व में) था ही, यह
निश्चित हो जाता है और अजीव तत्त्व था तो यह भी निर्णित हो जाता है। क्योंकि, अकेला
जीव, अजीव को कैसे पैदा कर सकता है? दूसरी बात यह है कि जो जिसमें
न हो, वह उसमें से कैसे पैदा हो सकता है? अर्थात् एक जीव था और उसने
दूसरे जीवों को पैदा किया,
यह भी संभव नहीं है।
कतिपय लोगों का कहना है कि, ‘ईश्वर ने सब जीवों को पैदा किया।’ तो
सब जीवों को पैदा करने वाला ईश्वर देहधारी था या देहरहित? यदि
देहधारी था तो यह कर्म से युक्त ही होना चाहिए और यदि देहधारी नहीं था, तो
वह जगत् की रचना कर ही नहीं सकता। दूसरा प्रश्न यह होता है कि ईश्वर शुद्ध था या
अशुद्ध? यदि अशुद्ध था,
तो उसे ईश्वर नहीं कहा जा सकता। यदि वह शुद्ध था तो उसमें
कर्तृत्व नहीं हो सकता। तीसरा प्रश्न यह होता है कि ईश्वर स्वतंत्र था या परतंत्र? यदि
परतंत्र था तो उसमें ईश्वरत्व घटित नहीं हो सकता। यदि वह स्वतंत्र था तो उसे जीवों
की रचना करने की आवश्यकता क्यों पडी? कदाचित् कोई कहे कि लीला
(क्रीडा) के लिए बनाए,
तो जिसमें राग या द्वेष न हो, उसमें लीला कैसे हो
सकती है? लीला करने की इच्छा होना, राग है न? जिसमें राग का अंश भी
न हो, उसे लीला करने की इच्छा कैसे हो सकती है? यदि उसमें राग माना जाए तो
रागी को ईश्वर कैसे माना जा सकता है? अतः ईश्वर ने जीवों को पैदा
किया, ऐसा कहने वालों को तत्त्व का सच्चा ज्ञान ही नहीं है। जीव तत्त्व और अजीव
तत्त्व को किसी ने बनाया नहीं, अपितु ये दोनों तत्त्व अनादिकाल से हैं
ही। क्योंकि,
यदि ये नहीं थे तो उत्पन्न कैसे हुए? यह
प्रश्न खडा होता है। यदि आपने तत्त्वज्ञान पाया हो तो तत्त्वों के स्वरूप का इस
प्रकार विचार कर सकते हैं न?-सूरिरामचन्द्र
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