गुरुवार, 5 सितंबर 2013

धर्म बिना की आधुनिक शिक्षा विनाशक है


आत्म-शुद्धि के विचार और उस विषयक बात करने से पूर्व आत्मा का खयाल न हो तो क्या हो? आपको यदि किसी भी तरह अपना और अपनी संतान का कल्याण करना हो, उनका उद्धार करना हो तो सर्व प्रथम मनुष्यत्व प्राप्त करना होगा। मनुष्यत्व आने के पश्चात यह निश्चित होगा कि मैं विश्व का रक्षक हूं, भक्षक नहीं; सहायक हूं, विनाशक नहीं और परमार्थ के लिए वचनबद्ध हूं।प्राचीन समय में सब कलाओं का ज्ञान प्राप्त करने वाले के लिए भी जब तक वह धर्म-कला से अनभिज्ञ होता, तब तक उसकी सारी कलाएं व्यर्थ मानी जाती थी। धर्म के बिना सारा ज्ञान, विवेकहीन गुणों के समान होता है। शरीर अत्यंत सुन्दर हो, परन्तु नाक न हो; वैसे ही धर्म के बिना का ज्ञान है।

सब जानता हो, परन्तु आत्मा क्या है और आत्म-सुख के साधन कौनसे हैं’, यह नहीं जानता हो, तब तक समस्त ज्ञान निष्फल है, विनाशक है। धर्म-कला पर ही समस्त कलाओं की सफलता अवलम्बित है। उसके बिना समस्त कलाएं निष्फल हैं। धर्म के बिना सारा ज्ञान अधूरा और विनाश की ओर ले जाने वाला है। आज जो धांधली और शोरगुल हो रहा है, जो विनाशक-विकास हो रहा है, जो उत्पात और हिंसा का विभत्स ताण्डव दिखाई दे रहा है; उसका सबसे बडा कारण धार्मिक-शिक्षण का अभाव है। बडे भारी डिग्रीधारी बन गए, पदवी प्राप्त कर ली, लेकिन उनकी इंसानियत मर गई, मनुष्यता मर गई, जीने का सलीका नहीं आया; कारण कि धार्मिक शिक्षा प्राप्त नहीं की, पुण्य-पाप आदि तत्त्व नहीं समझे, हेय-ज्ञेय-उपादेय को नहीं समझा तो विवेक कहां से आएगा, उदय कैसे संभव है, कल्याण कैसे होगा? -आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें