मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

अनीति नहीं करें


मोक्ष में जाने के लिए हमें कैसा जीवन जीना चाहिए? यह हमें भगवान ने सिखाया, इसी तरह साधु बनने के लिए आपको कैसा जीवन जीना चाहिए, यह भी भगवान ने सिखाया है। जैसे श्रावक भीख मांग कर पेट नहीं भरता, वैसे अनीति करके घी-केला भी नहीं खाता। वह सत्य और त्याग के मार्ग पर चलता है। संसार का प्रत्येक सुख चाहे वह कषाय जनित हो या विषय जनित हो, मैथुन में आ जाता है। मैथुन में पाप है, ऐसा जो नहीं समझ पाया, उसे संसार असार लगता है, ऐसा कैसे कहा जाए? पौद्गलिक सुख बुरा न लगे और पौद्गलिक दुःख सहन करने योग्य न लगे तो नवकार से लेकर नवपूर्व तक पढ लेने पर भी वह अज्ञानी रहता है और वह विरति की ऊंची में ऊंची क्रियाएं करे तो भी उसमें गाढ अविरति ही होती है। शास्त्र में लिखा है कि इस काल में पढे-लिखे अज्ञानी बहुत होंगे। साधुवेश में रहे हुए अविरति वाले बहुत होंगे, सम्यक्त्वी क्रिया करने वाले मिथ्यात्वी बहुत होंगे। अतः हमें सावधान रहना है और जैन धर्म को लजाने वाले अनीति के मार्ग से बचना है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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