आज आप लोगों के घरों में बुजुर्गों की स्थिति ऐसी हो गई है कि ‘जो
कमावे वह खावे और दूसरा मांगे तो मार खावे’। ऐसी स्थिति हो जाने के कारण
ही इस देश में वृद्धाश्रम या विधवाश्रम की बातें चलने लगी हैं। ऐसे आश्रम स्थापित
हों, यह कोई गौरव की बात नहीं है; अपितु उन बुजुर्गों और विधवाओं के
परिवारों के लिए तथा समाज और संस्कृति के लिए शर्म की बात है।
आपसे मेरा पहला प्रश्न यह है कि आपका राग आपके माता-पिता पर अधिक है या
पत्नी-बच्चों पर अधिक है?
भगवान पर राग होने का दावा करने वाले को मेरा यह
महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। योग की भूमिका में माता-पिता की पूजा लिखी है, पत्नी-बच्चों
की नहीं। मुझे तो ऐसा महसूस होता है कि आज के लोगों को कम से कम कीमत की कोई चीज
लगती हो तो वह उसके मां-बाप हैं।
मर्यादा
का दिवाला निकल रहा है
मर्यादा रहेगी वहां तक धर्म रहेगा। महापुरुष भी किसी की निश्रा में रहते थे, उनकी
आज्ञानुसार चलते थे। आज चारों ओर मर्यादा का दिवाला निकलता जा रहा है। कोई किसी की
सुनने या मानने को तैयार नहीं। पुत्र माता-पिता की बात नहीं मानते और विद्यार्थी
शिक्षक का उपहास करते हैं। आज युवकों की क्या दशा है, यह
तो अखबार पढनेवाले आप लोगों को मालूम ही है, ये युवक अपने बाप के भी बाप
बन गए हैं। और प्रोफेसर के भी प्रोफेसर बन गए हैं। कॉलेजों के संस्थापक कॉलेजों को
कैसे चलावें,
इस चिंता में हैं और नए कॉलेज न खोलने के निर्णय पर आए हैं।
दुनिया में पढे-लिखे गिने जानेवाले अपनी होंशियारी का उपयोग भी दुनिया को परेशान
करने में और स्वयं का स्वार्थ साधने में कर रहे हैं।
आत्मा का ज्ञान हुए बिना, जितना अधिक पढा जाए उतना अधिक गंवारपन आता
है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज के कॉलेज हैं। आत्म-ज्ञान से रहित व्यक्तियों को
ज्ञान देने का यह परिणाम है। आत्म-ज्ञान से, धर्म से जीवन में मर्यादा आती
है और मर्यादा होने से घरों का संचालन भी ठीक तरह से होता है। मर्यादा से रहित
घरों में हमेशा झगडे हुआ करते हैं। मिथ्याज्ञान पाकर आपके लडके आपके न रहें यह आप
सहन कर सकते हैं,
परन्तु सम्यग्ज्ञान से आपके लडके आपके न रहकर साधु बन जाएं
तो यह आप सहन नहीं कर सकते। कैसी गजब की बात है? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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