आत्मा को परमात्मा बनाने का उपाय ही तीर्थ की सेवा है। स्थावर तीर्थ और जंगम
तीर्थ, इन दोनों तीर्थों की सेवा अपनी आत्मा को रत्नत्रयी स्वरूप बनाने के ध्येय से
हो तो आपका कल्याण दूर नहीं है। लेकिन, याद रखिए कि संसार के प्रति
अरूचि और मोक्ष के प्रति रूचि प्रकट हुए बिना यह नहीं हो सकता। हम तो यही चाहते
हैं कि आप में संसार के प्रति अरूचि और मोक्ष के प्रति रूचि प्रकट हो और इस रूचि
के योग से आपकी आत्मा रत्नत्रयीमय बने। संसार के प्रति अरूचि और मोक्ष के प्रति
रूचि प्रकट कराना,
यही सच्चे साधु के लिए भूषणरूप है। संसार के प्रति रूचि को
बढाने वाले साधु तो शासन के द्रोही हैं और स्व-पर के हित का कत्ल करने वाले हैं।
यह बात आपकी समझ में आ जाए तो आप कुसाधुओं के जाल में फंसने से, रसातल
में जाने से बच सकते हो और सुसाधुओं का योग प्राप्त कर के सरलता पूर्वक कल्याण के
भी साधक बन सकते हो।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें