यह मानव जीवन दुर्लभ है। देवता भी इसके लिए तरसते हैं, क्योंकि
इसी से आत्म-कल्याण संभव है। हमने असीम पुण्योदय से यह मानव जीवन पाया है, क्या
इसे हम यों ही गंवा देना चाहते हैं? जो उम्र चली गई, वह
तो व्यर्थ गई,
लेकिन जो जीवन बचा है, उसे संभालिए। मृत्यु की घड़ियों
में साथ आने वाला केवल धर्म ही है। जिन भौतिक पदार्थों को आप एकत्रित कर रहे हैं, वे आपके
साथ आने वाले नहीं हैं। उन्हें यहीं पर छोडकर जाना पडेगा। जरा सोचिए कि आपने कौनसी
चीज बनाई है?
क्या कमाया है आपने? इस जीवन से जाते समय कितना
साथ ले जाएंगे?
चौबीस घंटे भौतिक साधनों की कमाई कर रहे हैं, पापकर्मों
का उपार्जन कर रहे हैं,
आत्मा की उपेक्षा कर रहे हैं, तो भविष्य क्या होगा? आपके
जीवन का उद्देश्य क्या है?
निरुद्देश्य जीवन का कोई महत्त्व नहीं है। धर्म को आचरण में
लाओ। सम्यग्दृष्टि बनो। सम्यग्दृष्टि व्यक्ति का जीवन तनाव रहित होता है। आज जितने
तनाव और संघर्ष परिलक्षित हो रहे हैं, यह सब मिथ्यात्व के कारण हैं।
हम शान्ति की खोज में बाहर भटक रहे हैं, भौतिक साधनों में उसे खोज रहे
हैं, किन्तु वह उनमें कहीं नहीं मिलती। हम अंतर्मुखी होकर सम्यग्दृष्टि बनेंगे तो
चिरस्थाई शान्ति को प्राप्त कर सकेंगे। सम्यग्दृष्टि भाव का जागरण होने के पश्चात
हमारे सामने जो घोर तिमिर छाया हुआ है; नष्ट हो जाएगा और अलौकिक
ज्योति से हमारा जीवन जगमगाने लगेगा। हम वीतरागवाणी को जीवन में उतार कर
आत्म-कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करें, तभी यह जीवन सार्थक है।-आचार्य
श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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