मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

मनुष्य, मनुष्य किससे ?



मनुष्य भव की प्राप्ति को ऊंची कक्षा में गिनी इसका कारण क्या? मनुष्य जीवन अच्छा, इतना कहने मात्र से ही इसकी सार्थकता नहीं है। यह जीवन भोग के लिए, मोजशोख के लिए, दुनिया की सभी चीजों के उपभोग के लिए ही है, इस प्रकार समझानेवाले मिलें तो? तो परिणाम भयंकर हैं। यदि चाहे जो खाना, चाहे जो पीना, पहिनना, ओढना और इच्छानुसार वर्तन करना, इसमें ही मनुष्य जीवन की सफलता हो तो मनुष्यजीवन और पशुजीवन में अंतर नहीं है। आप ज्ञानी किसलिए हैं? पशु किसी को माथा मारे, पूंछडा मारे तो गुनहगार नहीं माना जाता है, क्योंकि वह अज्ञानी है, किन्तु मनुष्य मारे तो गुनहगार माना जाएगा, क्योंकि दुनिया ने आपको समझदार माना है। मनुष्य की प्रत्येक प्रवृत्ति मनुष्य के तरीके की चाहिए। मनुष्यभव ऊंचा मानने मात्र से ही काम सधजाता होता तो सभी मानव पूजापात्र बन जाते। बहुत से मनुष्य ऐसे भी हैं कि जो जेल में बिठाने के लायक ही हैं। दुनिया में अपमानपात्र, जिनका नाम भी लेने में दुनिया पाप मानती है, जिनका मुँह देखना भी पाप माना जाता है, ऐसे भी मनुष्य हैं न? मनुष्य वो जिसमें मनुष्यत्व हो। जो पाप से डरे, जिसका जीवन सदाचार युक्त हो, जो सत्य और न्याय के मार्ग पर चले, मनुष्यभव में आकर अपना आत्मकल्याण करने का जिसका लक्ष्य हो, क्योंकि यही वह भव है, जिससे मनुष्य मोक्षगामी बन सकता है और चरम व परम सुख प्राप्त कर सकता है। सांसारिक सुख तो सुखाभास मात्र हैं, असली सुख और आनंद तो आत्मा का चरमोत्कर्ष करने में है। ऐसा करनेवाला मनुष्य ही मनुष्य है, बाकी तो पशुओं से भी अधिक खतरनाक हैं।-सूरिरामचन्द्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें