संसार में भटकते जीवों के आत्म-निस्तार में सहायक बनना और आत्म-निस्तार के एक
बेजोड साधनरूप धर्मतीर्थ की प्रभावना करना, इससे बढकर दूसरा कोई उत्तम
कार्य इस संसार में न था,
न है और न होगा। ऐसे उत्तम कार्य करने-करवाने वाली आत्माएं
तो उत्तम हैं ही,
ऐसे कार्य की सच्चे हृदय से सद्भाव पूर्वक अनुमोदना करने
वाली आत्माएं भी उत्तम हैं। अधम आत्माएं न तो ऐसे कार्य करती हैं, न
करवाती हैं और न ही अनुमोदना कर सकती हैं। इतना ही नहीं, ऐसे
पवित्र कार्यों की निन्दा करने वाली आत्माएं भी मौजूद है। ऐसी अधम आत्माएं बहुत ही
दया की पात्र हैं,
क्योंकि वे बेचारे अपनी आत्मा के लिए अपनी प्रवृत्तियों से
कई प्रकार की विडम्बनाएं उपस्थित कर रहे हैं और उसका उन्हें कोई मलाल भी नहीं है।
ऐसी अधम आत्माएं दया की पात्र हैं। हम चाहते हैं कि वे भी तीर्थयात्रा की महिमा को
समझें, तीर्थ की आराधना करें और अपनी आत्मा का उद्धार करें। ऐसी दयाभावना से हो सके
तो उन्हें उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर लाने का प्रयास करना चाहिए, साथ
ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उनकी दुष्ट प्रवृत्ति के कारण दूसरी आत्माएं
तीर्थ सेवा से वंचित न रह जाएं और वे तीर्थों के संबंध में झूठे खयाल न फैला पाएं।-आचार्य
श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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