विषय और कषाय की अधीनता कितनी भयंकर वस्तु है? विषय-कषाय की अधीनता ने जगत में कौनसे-कौनसे अनर्थों को उत्पन्न नहीं किया? विषय-कषाय की अधीनता ने भाई-भाई के बीच में, बाप-बेटों
के बीच में,
पति और पत्नी के बीच में कितने-कितने झगडे पैदा किए हैं? विषय-कषाय की अधीनता का अस्तित्व नहीं हो तो झगडों का अस्तित्व भी कहां से
होगा?
इसका विचार तो करो! कोई कुटुम्ब ऐसा बताओगे कि जिस कुटुम्ब
में किसी भी समय अर्थ-काम की रसिकता से अथवा विषय-कषाय की अधीनता से झगडा उत्पन्न
न हुआ हो या युद्ध क्रीडा नहीं हुई हो? भाग्य से ही कोई
कुटुम्ब ऐसा मिलेगा? तब, इस
प्रकार के झगडे क्या घर के बाहर भी कम होते हैं? ऐसा
होने पर भी ‘धर्म के नाम पर ही अधिकांशतः झगडे हुए हैं’, इस
प्रकार मिथ्या भ्रम फैलाया जाता है तो इसके पीछे मकसद क्या है? धर्म के प्रति तीव्र अरुचि और धर्मनाश की भावना का ही इसमें संकेत मिलता है न? यह ठीक नहीं है और ऐसे दुष्प्रचार को पूरी दृढता से रोकना चाहिए।
बलिदान देकर भी धर्म की रक्षा करें
धर्म के ऊपर आफत आए और वीतराग नहीं बने हुए धर्मी बाह्य
समता से चिपके रहें, यह उचित नहीं है। फिर भी यदि ऐसी बाह्य
समता चिपक जाए तो उसका अर्थ होगा कि उस आत्मा के अन्तर में मोक्ष मार्ग के प्रति
जैसा चाहिए वैसा राग अभी प्रकट हुआ ही नहीं है। स्वयं अशक्त हो और आक्रमण का सामना
कर सके,
ऐसी हालत न हो तो बात अलग है। सत्व के अभाव में कदाचित्
सच्चा व्यक्ति भी प्रकट में न बोल सके, यह संभव है, किन्तु सच्चा राग होगा और उसके अन्तर में जलन नहीं होगी, यह संभव नहीं है। जिस वस्तु पर राग होता है, उस
वस्तु की लूट रागी सहन नहीं कर सकता है। जिस वस्तु को आत्मा तारक मानती है, उस वस्तु के ऊपर आफत आए तो वह सहन नहीं कर सकती है। धर्म के रागी में प्रशस्त
कषाय का उत्पन्न होना पूर्णतः स्वाभाविक है। सच्चा धर्मी दुनिया में संरक्षण करने
योग्य एक मात्र मोक्ष मार्ग को ही मानता है, इसलिए
वह पौद्गलिक ऋद्धि चली जाए तो इसे भाग्याधीन मान लेता है और स्वयं की निन्दा हो तो
अपने अशुभ कर्म का उदय मान लेता है और समता रख लेता है, किन्तु
मोक्ष मार्ग पर आफत आए तो वह इसे बर्दाश्त नहीं करता, अपना
सम्पूर्ण बलिदान देकर भी वह उस आफत को टालने का प्रयास करता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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