मार्च-अप्रेल बसंत ऋतु के माह माने जाते हैं, लेकिन इस बार मौसम का मिजाज आपने देखा है न? कितनी तबाही हुई है? बेमौसम
बारिश, ओलावृष्टि और स्वाइन फ्लू सहित
विभिन्न मौसमी बीमारियों का कहर! पिछले पांच-सात वर्षों के मौसम तंत्र और बीमारियों, तनाव-अवसाद के कारणों आदि का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करेंगे तो
आपको पता चल जाएगा कि यह सब विनाशक विकास, भौतिकता की चकाचौंध में चल रही महत्वाकांक्षाओं की अंधी दौड और हमारे खान-पान व
रहन-सहन में आए बदलावों का परिणाम है। अंधाधुंध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन व विनाश, पृथ्वी-जल-वायु-वनस्पति-अग्नि और त्रस जीवों के प्रति बरती गई
बर्बर हिंसा का यह प्ररिणाम है।
अब भी संभलो, अब भी चेतो, नहीं तो महाविनाश आपके द्वार पर खडा है। ग्लोबल वार्मिंग के
लिए केवल घड़ीयाली आंसू बहाने से काम नहीं चलेगा। हमारी विकास नीतियों पर गंभीर चिंतन-मनन
की आज आवश्यकता है। हमने सदाचार, "सादा
जीवन उच्च विचार" का रास्ता छोड दिया है, हम भटक गए हैं। आज भी उन लोगों की मूर्खता पर तरस आता है जो इस मौसम को आनंद का
मौसम बता रहे हैं। यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है, क्योंकि हजारों निर्दोष लोग बेबस रो रहे हैं।
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