शिक्षण तो सभी
चाहते हैं। अशिक्षित रहने की कोई इच्छा नहीं करता है। किन्तु जिस हेतु से शिक्षण
लेना है, वह वस्तु तो
रोम-रोम में परिणत होनी चाहिए न? ‘शिक्षितों से तो ऐसे ही व्यवहार की
अपेक्षा की जा सकती है।’ ऐसा परिणमन होना ही चाहिए न? साहूकार की छाप
कौनसी है? आधी रात को पैसा
देता है, स्वीकार समय से
एक मिनट भी देरी नहीं करता है और तनिक भी बदलता नहीं है, तो वह साहूकार।
साहूकार कहलाना और इन समस्त क्रियाओं को दूर रखना, यह कैसे चलेगा?
शिक्षण देना और
शिक्षण फलदायी हो, इस प्रकार का प्रयत्न कुछ भी करने में नहीं आता है, तो वह शिक्षण
फलदायी किस प्रकार होगा? शिक्षण पाया हुआ आत्मा उत्पात करने
वाला कैसे बनता है? धार्मिक हेतु रहित शिक्षण से ही उत्पात जागृत होता है और ऐसा शिक्षण प्राप्त
किए हुए व्यक्ति समाज में कंटक रूप ही बनते हैं।-सूरिरामचन्द्र
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