वर्तमान मौजशोख
के साधन व भौतिकता की चकाचौंध में ही जो स्वर्ग व मोक्ष की कल्पना करता हो, उसे तो
धर्मशास्त्र भी सिर्फ बोझारूप लगेंगे। भावी जीवन को सुधारने और आत्महित की चिंता
के प्रति जो बेपरवाह हैं, उन्हें अपने स्वयं के दोष सुनने की
इच्छा भी नहीं होती है, फलस्वरूप शिष्ट पुरुषों का समागम
और तत्त्वचिंतन आदि गुणों का आगमन बन्द हो जाता है और जीवन में अहंकार आ जाता है।
ऐसे लोगों को फिर चापलूसी ही अच्छी लगती है, जो स्वयं भी
डूबता है और दूसरे को भी डुबो देता है। आज अधिकांश लोगों में अपनी कमियां या
क्षतियां सुनने की ताकत नहीं रही है, इस कारण कोई खरी-खरी कहे तो बुरा
लगता है; परन्तु जब
आत्मज्ञान होगा, तब अपनी भूल बताने वाले उपकारी लगेंगे।-सूरिरामचन्द्र
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