मन की तृष्णा ने
आज कितना भयानक आतंक फैलाया है? पिता-पुत्र, पति-पत्नी, बडा भाई, छोटा भाई, सास-बहू इन सब
लोगों के बीच का व्यवहार देखो। जरा सोचो तो सही एक दूसरे के लिए कितनी ईर्ष्या, द्वेष-भावना दिल
में भरी हुई है? मन की तृष्णा
बढी है। पर-वस्तुओं को प्राप्त करने की व भोगने की लालसा बढी है और त्याग-भावना
नष्टप्रायः हो गई है। इसके परिणामस्वरूप आज के संसार में भयानक भगदड और भागदौड मच
रही है। लोग भौतिकता की चकाचौंध में अंधे हो गए हैं। जब तक मन की भयानक भूख नहीं
मिटेगी और त्याग की भावना पैदा नहीं होगी, तब तक ऐसी भगदड
और भागदौड मची रहेगी, इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है। इस तरह विचार किया जाए तो अवश्य समझ में आएगा
कि मन की भौतिक भूख ही सारे विनाश का कारण है।-सूरिरामचन्द्र
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