अहिंसा, संयम और तप
मुक्ति के लिए हैं, संसार की साधना के लिए नहीं हैं। तपस्वी की लोग भले ही पूजा करें, परन्तु लोगों के
पूजने के कारण तपस्वी तो यह मानता है कि जिस तप की संसार पूजा करता है, उस तप की मुझे
तो सर्वाधिक पूजा करनी चाहिए। अपनी पूजा के लिए तप नहीं होना चाहिए। तप के कारण
तपस्वी की पूजा है, संयम के कारण संयमी की पूजा है; इस पूजा से अहंकार नहीं आना चाहिए, बल्कि तपस्वी को
तप में, संयमी को संयम
में और अधिक दृढ होना चाहिए, ताकि लोगों का तप और संयम के प्रति
विश्वास बढे, वे भी
मोक्ष-मार्ग के लिए तप और संयम के मार्ग पर अग्रसर होने के उत्सुक बनें।
आज धर्म कदाचित्
कतिपय धर्मात्माओं के अज्ञान के कारण बिगड रहा हो, ऐसा कई लोगों को
दिखाई देता होगा, कई लोग ऐसी बातें भी करते हैं; परन्तु आपका संसार तो पूर्णतः
सड-गल गया है। बिगडे हुए को तो फिर भी सुधारा जा सकता है; सडे हुए को
सुधारा नहीं जा सकता। सडे हुए को तो काट कर फेंक ही देना पडेगा। सडे-गले की सर्जरी
करने की आपकी तैयारी होगी तो बिगडे हुए अपने आप सुधर जाएंगे।-सूरिरामचन्द्र
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