शनिवार, 16 मई 2015

संसार जैसा राग धर्म में नहीं



व्याख्यान सुनते समय तो मन में विराग हो जाता है, परन्तु बाद में जागृति टिकती नहीं। ऐसा क्यों होता है, इसका विचार किया है? विद्यार्थी पाठशाला से घर जाता है तो क्या पढा हुआ भूल जाता है? विद्यार्थी केवल पाठशाला में ही पढता है या घर पर भी पढता है। व्यापारी दुकान से घर जाता है, तो क्या उसके दिमाग से व्यापार की सब बात निकल जाती है? तेजी का व्यापार किया हो और घर पर आराम से समाचार पत्र पढते हुए मंदी होने के समाचार देखने में आएं तो व्यापार की याद आए बिना रहेगी? दुकान पर गया हुआ गृहस्थ, घर पर क्या है, कैसे है, यह भूल जाता है क्या? नहीं। दुकान पर बैठा हुआ व्यक्ति घर की खबर है’, ऐसा कहता है और घर पर बैठा हुआ व्यक्ति दुकान की खबर है’, ऐसा कहता है। क्योंकि वहां गाढ राग है। धर्म के राग में कमी संसार के सुख के प्रति गाढ राग के कारण है, यह आपको अनुभव होता है क्या? इन सबको सुरक्षित रखते हुए धर्म हो तो करना, ऐसा लगता है न? परलोक में कौन उपयोगी होगा, धर्म या संसार? आपको और नहीं तो इतना विचार तो आता है न कि यहां से मुझे जाना है और जो मैंने यहां बहुत सारा इकट्ठा किया है, वह साथ आनेवाला नहीं है?’ ऐसा विचार आए तो उस पर से राग घटे। ऐसा विचार न आए तो, भले ही न मिले, न भोगा जा सके, तो भी पाप का बंध होगा।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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