शनिवार, 30 मई 2015

गुणानुराग के नाम पर उन्मार्ग की पुष्टि



उन्मार्गी में रहे हुए गुण की प्रशंसा से उन्मार्ग की पुष्टि होती है; क्योंकि उस आकर्षण से दूसरे उसके मार्ग पर जाते हैं। ऐसा व्यक्ति भी उसकी प्रशंसा करता है’, यों समझकर जनता उसके पीछे घसीटी जाती है। परिणाम स्वरूप अनेक आत्माएं उन्मार्ग पर चढती हैं, अतः गुणानुराग के नाम से मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा अवश्य तजने योग्य है।गुण यह प्रशंसायोग्य है। यह बात नितांत सत्य है, परंतु उसमें भी विवेक की अत्यंत ही आवश्यकता है। मिथ्यामतियों की प्रशंसा के परिणाम से सम्यक्त्व का संहार और मिथ्यात्व की प्राप्ति सहज है। गुण की प्रशंसा करने में क्या हर्ज है?’ इस प्रकार बोलने वालों के लिए यह वस्तु अत्यंत ही चिंतनीय है। गुणानुराग के नाम से मिथ्यामत एवं मिथ्यामतियों की गलत मान्यताओं की मान्यता बढ जाए, ऐसा करना यह बुद्धिमत्ता नहीं है, अपितु बुद्धिमत्ता का घोर दिवाला है। घर बेचकर उत्सव मनाने जैसा यह धंधा है। गुण की प्रशंसा’, यह सद्गुण को प्राप्त और प्रचारित करने के लिए ही उपकारी पुरुषों ने प्रस्तावित की है। उसका उपयोग सद्गुणों के नाश के लिए करना, यह सचमुच ही घोर अज्ञानता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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