मंगलवार, 19 मई 2015

महापुण्य से मिला



आपका मन संसार से उद्विग्न होकर धर्म के प्रति आकर्षित हो तो आपको अनुभव होगा कि आपको बहुत अच्छी सामग्री मिली है। आप ऐसे कुल में जन्मे हैं जहां देव वीतरागी होते हैं’, यह सुनने को मिला। अभक्ति से खीजे नहीं और भक्ति से रीझे नहीं’, ऐसे देव जन्म से ही आपको मिल गए। त्यागी ही गुरु हो सकते हैं, घरबार वाले गुरु नहीं हो सकते’, यह आपको बात-बात पर सुनने को मिलता है। धर्म भी त्यागमय और अहिंसामय मिल गया है।यह सब कैसे मिल गया? आप जैनकुल में जन्मे, इसलिए न? ऐसा कुल महापुण्य से मिलता है न? हां, तो इस पुण्य का आपको कितना आनंद है? अन्य कुलों में जन्म लेनेवालों को या तो देव मिले ही नहीं, यदि मिले तो ऐसे कि जिनके पास जाने से रागादि का पोषण हो। और जैन कुल के आचार भी कैसे कि जिन्हें यदि रूढ से भी पाला जाए तो लाखों पापों से बचा जा सकता है। रात्रि को न खाना, अर्थात् जिस काल में अधिक जीवोत्पत्ति हो, उस काल में चूल्हा न जलाना। जीवदया का पालन भी हो और शरीर का निर्वाह भी। अन्य कुलों में प्रतिदिन रात्रि को चूल्हे जलते हैं न? रात्रि को 10-12 बजे झूठन निकलता है अथवा सारी रात झूठन पडा रहता है, उसमें जीवोत्पत्ति होती रहती है। एक रात्रि भोजन न करने के आचार का पालन करने से ही, कितनी जीव हिंसा से बचा जा सकता है? परन्तु आज यह आचार जैन कुलों में रूढ है, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। कुल तो जैन का है, परन्तु जैन कुल की मर्यादाएं, जैनकुल का आचार जीवित नहीं रहा न?-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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