रविवार, 17 फ़रवरी 2013

संसार को बढाने की हायतौबा क्यों?


लोगों को मरते हुए या उनके शव के दाह संस्कार को तो आपने आपकी जिन्दगी में कई बार अवश्य देखा होगा। कभी आपको लगा कि एक दिन मेरे शरीर की भी यही हालत होनी है? किसी के अंतिम संस्कार के लिए, किसी को जलाने के लिए श्मशान गए हो, तब कभी आपको ऐसा लगा कि इस प्रकार से किसी दिन मेरे शरीर को भी स्नेहीगण, संबंधीगण, पडौसी आदि ले जाएंगे और मेरा खून ही मेरे शरीर को आग लगा देगा? धन-सम्पत्ति कुछ भी साथ नहीं लेजा सकोगे।

आपको यह निश्चित हो कि मेरा यह शरीर अमर रहने वाला है तो बोलो! किन्तु भयंकर से भयंकर पापात्माएं भी अंतिम कोटि के नास्तिक होने पर भी यह बात तो अंत में जानते हैं कि एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि जिस दिन इस शरीर को कोई संग्रह करने वाला नहीं है। या तो जला देंगे या तो दफनाकर छोड देंगे। मानो कि अशुभ के योग से जो कोई ऐसे स्थान में मरे हों तो जंगल मं पशु-पक्षी, चील-कौए उसका भक्षण करेंगे। समुद्र इत्यादि में फेंक देंगे, किन्तु शरीर के लिए ऐसा कुछ न कुछ होने वाला ही है, यह निश्चित बात है। तो फिर संसार में संसार को और बढाने की लालसा या हायतौबा क्यों, किसके लिए? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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