बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

अन्याय-अनीति का प्रतिकार होना ही चाहिए


जब धर्म के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हों, विरोधी लोग देव-गुरु-धर्म की खुलेआम निंदा कर रहे हों, उन पर चोट पहुंचा रहे हों या फिर अन्याय-अनीति से धर्म की हानि हो रही हो, अहिंसा को जड-मूल से उखाडने की बातें चल रही हो; ऐसे संकट की घडी में कोई सत्पुरुषों को सहनशील बनने की सलाह दे तो उस सलाह को वे कभी भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। उस समय वे खुलेआम कहते कि ऐसे प्रसंगों पर सहनशीलताधारण करने वाला सहनशीलनहीं है, अपितु काम को बिगाडने वाला है, कायर है। यह सहनशीलता का गलत अभिप्राय है। अरिहंत परमात्माओं ने, हमारे महापुरुषों ने ऐसी सहनशीलता का सहारा कभी नहीं लिया, बल्कि इसके विपरीत ऐसी सहनशीलता का उपदेश देने वालों को धिक्कारते और समाज को भी सावधान करते कि ऐसे लोगों से बचकर रहना, अन्यथा तुम लुट जाओगे।

जब धर्म के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हों, देव-गुरु-धर्म पर हमला हो, अन्याय हो; तब उसका प्रतिकार न करना मानवता के लिए घोर कलंक है, श्रावकत्व पर कलंक है, समाज पर कलंक है। सच्चा धर्मवीर ऐसे अन्याय के विरूद्ध अलख जगाता है। वह न तो स्वयं अन्याय करता है और न अपने सामने होने वाले अन्याय को देख सकता है। वह सदैव अन्याय और अनीति के प्रतीकार के लिए कटिबद्ध रहता है। अन्याय का प्रतिकार करने के लिए देव-गुरु-धर्म-समाज-संस्कृति के चरणों में वह अपने प्राणों को हंसते-हंसते बलिदान कर देता है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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