शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

धन का नशा खराब होता है


नीति से कमाया हुआ धन भले ही अच्छा माना जाए, परन्तु धन तो वास्तव में खराब ही है। जो धन का बन जाता है, वह बाप का नहीं रहता, मां का नहीं रहता, भाई का नहीं रहता, पुत्र का नहीं रहता, पुत्री का नहीं रहता; वास्तव में फिर वह किसी का नहीं रहता। धन ही उसके लिए सबकुछ होता है। वह धन के नशे में पागल हो जाता है, बेभान हो जाता है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें