मन की तृष्णा ने आज कितना
भयानक आतंक फैलाया है? पिता-पुत्र, पति-पत्नी, बडा भाई, छोटा भाई, सास-बहू इन सब लोगों के बीच
का व्यवहार देखो। जरा सोचो तो सही एक दूसरे के लिए कितनी ईर्ष्या, द्वेष-भावना दिल में भरी हुई है? मन की तृष्णा बढी है। पर-वस्तुओं को प्राप्त करने की व
भोगने की लालसा बढी है और त्याग-भावना नष्टप्रायः हो गई है। इसके परिणामस्वरूप आज
के संसार में भयानक भगदड और भागदौड मच रही है। लोग भौतिकता की चकाचौंध में अंधे हो
गए हैं। जब तक मन की भयानक भूख नहीं मिटेगी और त्याग की भावना पैदा नहीं होगी, तब तक ऐसी भगदड और भागदौड मची रहेगी, इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है। इस तरह विचार किया जाए तो
अवश्य समझ में आएगा कि मन की भौतिक भूख ही सारे विनाश का कारण है। संसार के प्रति
अरुचि न हो तो, धर्म किस काम का? अधिक प्राप्त करने के लिए धर्म किया जाता हो तो वह धर्म, धर्म रहता ही नहीं,
धंधा हो जाता है, बिना पैसे के धंधे जैसा। आज आपको साधुओं की आवश्यकता क्यों
है? बहराने के लिए?
इनके पगल्ये हों तो घर
में लक्ष्मी के पगल्ये हो जाएं इसलिए?
या धर्म करने हेतु
शास्त्र की विधि का ज्ञान आवश्यक है इसलिए? -आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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