श्री जैन दर्शन अर्थात् कर्म
का संबंध छोडने का मार्ग दिखाने वाला दर्शन। इस संसार चक्र से छुडाने वाला दर्शन
वह जैन दर्शन। संसार के संबंधों को दृढ करे,
वह सच्चा धर्म नहीं
है। सच्चा धर्म तो वही है कि जिसने संसार के संबंध को नाम-शेष करने का मार्ग
दिखाया हो। श्री जैन दर्शन की विवेकपूर्वक विचारणा करो। संसार के संबंध को तोडने
की जिनकी इच्छा उत्पन्न नहीं होती हो,
वह जैन नहीं। संसार के
संबंध को छोडने का उपदेश नहीं दे, वह सच्चा उपदेशक नहीं और
संसार के संबंध दृढ बनें, ऐसा उपदेश दे, वह जैन साधु नहीं,
अपितु सिर्फ वेशधारी
है। ये भगवान के शासन के नाम पर पेट भरने वाले और तिरने के नाम पर स्वयं डूबने
वाले और दूसरों को डुबाने वाले हैं। श्री जैन दर्शन का साधु जो उपदेश देता है, वह संसार के संबंध को तोडने का उपदेश देता है। कारण कि इसके
बिना कल्याण नहीं है। ऐसा अनंतज्ञानियों ने जोर देकर कहा है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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