रविवार, 3 फ़रवरी 2013

मन्दिर-उपाश्रयों का दुरुपयोग हर हाल में रोकें


खराब स्थान का अच्छा उपयोग हो सकता है, किन्तु अच्छे स्थान का खराब उपयोग कदापि नहीं हो सकता। आज उपाश्रय में क्या करने की धमाल मच रही है? उपाश्रय में कहीं अर्थ और काम की मंत्रणा होती है? आज अर्थ और काम की इतनी ज्यादा वांच्छा बढ गई है कि लोग धर्म स्थानों को भी अर्थ-काम की साधना में लगा रहे हैं। उपाश्रय में तो सिर्फ और सिर्फ धर्म-क्रिया ही होनी चाहिए, धर्म की ही बातचीत होनी चाहिए, धर्म का ही विचार होना चाहिए; किन्तु यहां तो राजनीतिक पैंतरेबाजी हो रही है, शादी-ब्याह और पुत्र-पौत्र के जन्म-दिन मनाए जा रहे हैं, यह कितनी हैरानी और दुःख की बात है? बनवाने वाले ने तो धर्म-क्रिया के लिए स्थान बनवाया, किन्तु आज के उसके हकदार उनकी भावनाओं पर ही छीणी-हथौडा मारने के लिए तैयार हैं। ऐसे लोगों को पूरी दृढता से समझाना चाहिए कि यहां तो सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषधादि धर्म-क्रिया ही हो सकती है। संसार को बढाने वाली क्रियाएं तो यहां हर्गिज नहीं हो सकती हैं।

दुर्भाग्य से आज घर और बाजार से धर्म की बातें निकल चुकी हैं। अब उपाश्रयों से भी धर्म निकालना चाहते हैं क्या? श्री जिनमन्दिर और उपाश्रयों की पवित्रता का नाश करना चाहते हैं क्या? धर्म के अर्थियों को सावधान होना चाहिए। ऐसे धर्म-शत्रुओं की इच्छाएं पूर्ण न हों, इसके लिए चाहे जैसे भी हो विरोध करना ही चाहिए। पुण्य-क्रियाओं के लिए निर्मित स्थानों का दुरुपयोग करने का पापात्माओं को क्या अधिकार है? आपके पूर्वजों ने आपके अच्छे के लिए मन्दिर-उपाश्रय आदि बनवाए हैं, इनका दुरुपयोग रोकना आपका कर्त्तव्य है। तिरने के स्थान को डूबने का स्थान नहीं बनाया जा सकता। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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