शास्त्रों ने
प्राणीमात्र के प्रति मित्र-भाव और समता रखने की बात कही है। मित्रता का अर्थ ही
है पर-हित-चिन्ता! दूसरे के हित की चिन्ता ही सच्ची मित्रता है। जब मित्र एकत्रित
होते हैं, तब इच्छाओं में कटौती करने के लिए सोचते हैं अथवा पाप
बढाने की सोचते हैं? आज तो चार व्यक्ति एकत्रित होते हैं तो ऐसी बातें
करके बिछुडते हैं कि शेष सारा समय उस गोष्ठी की आकुलता में ही व्यतीत होता है।
व्यापार की, बंगले की, मोटर की, नाटक की अथवा सिनेमा
की बातें करके अलग होंगे कि जिससे चौबीसों घण्टे एक ही बात के विचार और उसके ही
स्वप्न आते रहेंगे। नाटक में, सिनेमा में जो देखा, वह कब मिलेगा, यह रटन चलती रहेगी
या फिर दूसरी भौतिक महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति की लालसा, इच्छा, कामना में ही समय
व्यतीत होगा और इसी की जुस्तजू में जीवन के अमूल्य क्षण नष्ट होंगे।
इच्छा, इच्छा और इच्छा; इस इच्छा ने ही अनेक
मनुष्यों को पागल बना दिया है। जो देखा, वह कब प्राप्त हो; इस इच्छा ही इच्छा
में अनेक व्यक्तियों ने अपना जीवन नष्ट कर दिया। संसार में जो-जो अच्छी वस्तुएं
दृष्टि में आएं, उन सब को प्राप्त करने की इच्छाओं को ज्ञानियों ने
स्वयं अशान्ति को निमंत्रित करना बताया है। सांसारिक पदार्थों की इच्छा का, अर्थ और काम की
इच्छा का वस्तुतः कोई अन्त नहीं है। सौ वाला हजार चाहता है, हजार वाला लाख और
लाख वाला करोड पाना चाहता है, जो करोडपति हैं, वे अरबपति और अरबपति
हैं वे राजा बनना चाहते हैं। राजा शहंशाह और शहंशाह चक्रवर्ती बनना चाहते हैं।
चक्रवर्ती छःखण्ड के अधिपति और देवेन्द्र बनना चाहते हैं। इच्छाओं का कोई अन्त
नहीं। फिर? और आगे बढो! ज्यों-ज्यों लाभ होगा त्यों-त्यों लोभ
में वृद्धि होगी।
जलती अग्नि कब
बुझेगी? जब तक आप अग्नि में लकडियाँ डालते जाएंगे अथवा
केरोसीन उण्डेलते जाएंगे, अग्नि बुझेगी या और भडकती, फैलती जाएगी? अग्नि को बुझाने के
लिए तो पानी अथवा रेत चाहिए। यदि पानी या रेत न भी हों तब भी कम से कम केरोसीन
उण्डेलना और लकडियाँ डालना तो बन्द करें और जो लकडियाँ एकत्रित होकर आग को अधिक
भयंकर रूप से फैला रही है, उन जलती लकडियों को अलग-अलग करदें तो थोडी देर में
अग्नि शान्त हो जाएगी। इसी तरह अनंत इच्छाओं की तरंगों को काटिए। समस्त पदार्थों
की इच्छा जानबूझ कर अशान्ति को निमंत्रण है। वर्तमान अशान्ति का कारण है- सबकुछ
प्राप्त करने की इच्छा। विश्व में अनीति आदि पाप कैसे बढे? ‘सूखी रोटी मिलेगी तो
खाऊंगा, पर अनीति नहीं करूंगा’, यह भावना आज तिरोहित
हो गई है। कारण कि आज रोटी के अतिरिक्त कई निरर्थक वस्तुओं की इच्छाएं बढ गई है।
संसार के पदार्थों को प्राप्त करने की अभिलाषा पाप है और उन्हें प्राप्त नहीं करने
की इच्छा ही शान्ति का राज-पथ है।-सूरिरामचन्द्र
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