शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

धर्म-सुख के तीन प्रमुख साधन



जो अपने लिए प्रतिकूल हो, उसका दूसरे के प्रति आचरण नहीं करना’, यह सुख प्राप्ति का, धर्म प्राप्ति का आदर्श माध्यम है, लेकिन आज जिस प्रकार की जीवन-शैली के हम आदी बन गए हैं, उसमें यह कह देना जितना सरल है, आचरण में लाना उतना ही मुश्किल। इसलिए इसे जीवन में लाने के लिए तीन प्रमुख साधन ज्ञानियों ने बताए हैं-

साधुसेवा सदाभक्त्या, मैत्री सत्त्वेषु भावतः।

आत्मीयग्रहमोक्षश्च, धर्म हेतु प्रसाधनम्।।

सदा भक्ति पूर्वक हृदय में सम्मान से साधुजनों की सेवा करने के लिए तत्पर रहना, यह सच्चे सुख का पहला साधन है। यह गुण जिस मनुष्य में हो, उसमें विनय, लघुता, ऋजुता, सरलता एवं नतमस्तक होकर चलने की आदत होगी। वह नम्र होगा, उसमें अक्कडपन नहीं होगा। गुरु-सेवा से इस लोक में प्राप्त होने वाले तीन महाफल हैं- 1. सदा शुभ उपदेश, 2. धर्माचरण करने वाले महापुरुषों के दर्शन और 3. विनय। इससे हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार आदि दुःख उत्पादक पापों से बचने के स्वाभाविक रूप से प्रयत्न होते हैं। परिणामतः सम्पूर्ण, शाश्वत व दुःख रहित सुख प्राप्त होता है।

विश्व में जितने प्राणी हैं, उन सबके प्रति परमार्थ वृत्ति से किसी भी प्रकार के लाभ की आशा किए बिना प्रीति, यह सुख प्राप्ति का दूसरा साधन है। निःस्वार्थ प्राणी मात्र के प्रति मित्रता की भावना वाली आत्मा में शुभ भाव उत्पन्न होते हैं और उस भाव रूपी पानी से द्वेष रूपी अग्नि शान्त हो जाती है, जिससे आत्मा अनुपम कोटि की शान्ति का अनुभव कर सकती है।

संसार के नश्वर पदार्थों से ममता का त्याग सुख प्राप्ति का तीसरा साधन है। घर, परिवार, ऋद्धि-सिद्धि, राज्य-सिंहासन, महल, सम्मान, मौज-शौक सब नश्वर हैं। ये सब आपके नहीं हैं। इन्हें नहीं त्यागोगे तो भी छोडकर जाना पडेगा। स्त्री, बच्चों के हाथ जोडकर कहोगे कि मुझे जीवित रखोतो वे भी आपको जीवित नहीं रख सकेंगे। आयुष्य पूरा होने के बाद मरने वालों को कोई जीवित नहीं रख सकता। अधिक दुःख लगता होगा तो निकट खडे होकर रोएंगे और कष्ट में तनिक वृद्धि ही करेंगे। सभी पदार्थ इच्छा अथवा अनिच्छा से, हंसते अथवा रोते मन से अथवा बिना मन के त्याग कर जाना ही है, अतः वे आपके नहीं हैं, नश्वर हैं। उन पदार्थों के प्रति ममता को आत्मीयग्रह कहते हैं और उसका त्याग करना है। आत्मीयग्रह के त्याग से समस्त दोषों को उत्पन्न करने वाली और समस्त गुणों को नष्ट करने वाली तृष्णाभी नष्ट हो जाएगी। जिस दिन सब पदार्थों के प्रति ममता नष्ट हो जाएगी, उस दिन प्राणी मात्र के प्रति प्रीति करने में और साधु की सेवा करने में कोई अडचन नहीं आएगी। ये तीनों अहिंसादि धर्म-प्राप्ति के साधन हैं।-सूरिरामचन्द्र

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