बुधवार, 5 अगस्त 2015

संसार के पदार्थों से सच्चा सुख नहीं



सभी सुख चाहते हैं, मांगते हैं, सुख की इच्छा करते हैं, फिर भी सभी को जब-तब यही शंका रहती है, मन में यही सवाल खडा होता है कि आखिर सुख का साधन है क्या? सुख है कहां? यह कितना आश्चर्यजनक है? किसी ने बताया कि पैसे में सुख है, तो उसमें भी दिवाला निकल गया। दूसरे ने कहा, ‘पैसे तो मिले पर पल भर की भी शान्ति नहीं है।तीसरा बोला, ‘लक्ष्मी तो बहुत है, पर खाने वाला कोई नहीं है।चौथा कहने लगा, ‘खाने वाला तो है, पर वह पागल हो गया है।और पांचवें ने कहा, ‘सब कुछ है, पर शरीर बिगड गया है।हिन्दुस्तान के शहंशाह कहते हैं कि देश में विद्रोह भडक उठा है।वे भी दुःखी हैं। उनके मन की वे जानें, आपके मन की आप जानें। बहरहाल, सुख-शान्ति कैसे मिले, हमें तो यह सोचना है। जहां राज्य, जाहोजलाली, लक्ष्मी, रिद्धि-सिद्धि, बडप्पन, मान-सम्मान हो; वहां भी सुख-शान्ति न दिखे तो शास्त्र की शरण पकडनी चाहिए न? शास्त्र बताते हैं कि सुख किसी भिन्न वस्तु में है।

आप जिन वस्तुओं की प्राप्ति में सुख मान रहे हैं, उनसे सर्वथा भिन्न किसी अन्य वस्तु में सुख निहित है। यह बात आपके हृदय में बैठ जाए तो अच्छा है। सुख का उत्तम साधन वही है जो सबको समान सुख दे सके। जो किसी एक को सुख पहुंचाए और दूसरे को मारे, वह सुख का साधन नहीं है। सुख का साधन समष्टिगत होना चाहिए। संसार की कोई भी वस्तु अपनी आत्मा को सुख प्रदान नहीं कर सकती। संसार को तो दुःख रहित, पूर्ण और स्थाई सुख चाहिए। जो सुख प्राप्त होने के पश्चात् कभी दुःख का प्रभाव होने ही न पाए और न किसी की ईर्ष्या हो। आज अनेक मनुष्य तो ईर्ष्या से दुःखी हैं। जब तक निम्न कोटि की भावना रहेगी, तब तक ईर्ष्या भी जीती-जागती रहेगी। ईर्ष्या से जलकर राख होना पडता है। संसार के पदार्थ आपको सुख देने में समर्थ नहीं हैं, अतः हम मौज-शौक, ऐशोआराम और अमन-चैन में मस्त लोगों को त्यागी बनने की प्रेरणा और परामर्श देते हैं। बडे-बडे बंगलों में से भी अन्त में एक दिन बाहर निकलना पडेगा और आपका अपना खून ही आपको आग में राख कर देगा।

संसार की समस्त सामग्री निरर्थक है। उसमें फंसकर कहीं आपके सुख के मनोरथ चूर-चूर नहीं हो जाएं, इसलिए सर्वस्व परित्याग कर बाहर निकलने का हम आपको आह्वान करते हैं। कोई यह न कह दे कि हमें आप भिखारी क्यों बना रहे हैं? भिखारी तो वे होते हैं जो रोटी के लिए रोते हैं, बडों के प्रेम, कृपा और अनुकम्पा के लिए खुशामद करते हैं। जो अपने स्वरूप में स्थिर रहें, वे भिखारी नहीं हैं। जिस वस्तु में घुसकर आप बैठे हैं, वह दुःखदायी है। इसलिए हम आपको वहां से बाहर निकलने को कहते हैं, क्योंकि तभी आप सुख प्राप्त कर सकते हैं। -सूरिरामचन्द्र

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