शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

सच्चा शिक्षण


शिक्षण किसे कहा जाए? इसकी समझ आज न तो मां-बाप को है और न शिक्षकों को। और ये सब शिक्षण देने निकले हैं। ऐसे शिक्षण से तो आज पागलों की पैदावार बढ रही है।

सुख में विराग और दुःख में समाधि, यह भगवान अरिहंत देवों द्वारा जगत को दिया गया ऊॅंचा से ऊॅंचा शिक्षण है। ऐसे शिक्षण में प्रायः अधिकांश लोगों की रुचि नहीं है, इससे बहुत विकृतियां हो रही हैं।

आप अपनी संतानों को स्वार्थ के लिए ही पढाते हैं। शिक्षण देकर भी आप अपकार कर रहे हैं। ज्ञान का दान करके भी अज्ञानी बनाने का काम आपने शुरू किया है। ये कमाकर लावें, यही आप चाहते हैं, परन्तु असंतोष की आग में ये जल मरें, इसकी आपको चिन्ता नहीं है।

केवल पेट के लिए विद्या पढाना यह पाप है। आज तो सा विद्या या विमुक्तयेका बोर्ड लगाकर ठगने का धंधा किया जाता है, क्योंकि आज के शिक्षण में मुक्ति की तो कोई बात होती ही नहीं। सा विद्या या विमुक्तयेका अर्थ तो यह कि जो विद्या मुक्ति का बोध दे, लेकिन आज के स्कूल-कॉलेजों में मुक्ति के शिक्षण का स्थान तो स्वच्छंदता और विनाशक-विज्ञान ने ले लिया है। शिक्षा कभी तनाव और अवसाद देती है, आज समूचे शिक्षा क्षेत्र में और वहां से तथाकथित रूप से शिक्षित होकर निकलने वाले तनाव और अवसाद से ग्रस्त हैं.

सारी पीढी बिगड रही है, यह आप ऑंखों से देख रहे हैं, फिर भी हम से पूछते हैं कि शिक्षण में खराबी क्या है?’, यह क्या अभी निर्णय करना शेष रह गया है? खराबी न हो तो संतान बिगड गई है’, ऐसी बूम क्यों मारते हो?-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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