बुधवार, 18 अप्रैल 2012

मुझे मरना है, यह ध्यान रहे

मुझे यह शरीर छोडकर अन्यत्र जाना है’,इस बात को आज लगभग सभी भूल गए हैं। यहां से जाने के बाद मेरा क्या होगा?’ यह चिन्ता आज लगभग नष्ट हो गई है। मैं मरने वाला हूं,यह खयाल हर पल रहे तो जीवन में बहुत-सी समझदारी आ जाए। भावी जीवन को मोक्ष मार्ग का आधार बनाने के प्रयत्न शुरू हो जाएं। सिर्फ वर्तमान की क्रियाएं,पेट भरना, बाल-बच्चे पैदा करना और मौजमजा करना,ये क्रियाएं तो कौन नहीं करता है? तुच्छ प्राणी भी अपने रहने के लिए घर बना देते हैं,वर्तमान की इच्छापूर्ति करते हैं और आपत्ति में भागदौड भी करते हैं। मात्र वर्तमान का विचार तो क्षुद्र जंतुओं में भी होता है। भावी जीवन का विचार छोडकर जो सिर्फ वर्तमान के ही विचारों में डूबा रहता है, वह अपने कर्त्तव्य पालन से च्युत हुए बिना नहीं रहता है। वर्तमान मौजशोख के साधन व भौतिकता की चकाचौंध में ही जो स्वर्ग व मोक्ष की कल्पना करता हो,उसे तो धर्मशास्त्र भी सिर्फ बोझारूप लगेंगे। भावी जीवन को सुधारने और आत्महित की चिंता के प्रति जो बेपरवाह हैं, उन्हें अपने स्वयं के दोष सुनने की इच्छा भी नहीं होती है,फलस्वरूप शिष्ट पुरुषों का समागम और तत्त्वचिंतन आदि गुणों का आगमन बन्द हो जाता है और जीवन में अहंकार आ जाता है। ऐसे लोगों को फिर चापलूसी ही अच्छी लगती है,जो स्वयं को भी डूबोती है और दूसरे को भी डूबो देती है। आज अधिकांश लोगों में अपनी कमियां या क्षतियां सुनने की ताकत नहीं रही है, इस कारण कोई खरी-खरी कहे तो बुरा लगता है; परन्तु जब आत्मज्ञान होगा तब अपनी भूल बताने वाले उपकारी लगेंगे। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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