रविवार, 22 अप्रैल 2012

दुःख-मुक्ति और सुख प्राप्ति कैसे हो?

परम उपकारी ज्ञानी भगवंत फरमाते हैं कि अपने कल्याण की कामना को पूर्ण करने के लिए अन्य सभी उपायों का त्याग कर एक मात्र धर्म का ही सेवन करना चाहिए। धर्म के अलावा जितने भी उपाय हैं, वे सभी पापरूप हैं, उनसे कल्याण नहीं होता, बल्कि अकल्याण में ही वृद्धि होती है। अतः कल्याण की कामना हो तो पाप-प्रयत्नों से पीछे हटकर परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट सद्धर्म के आचरण में अप्रमत्त बनना चाहिए। मतलब कि केवल परमात्मा का घडी-दो घडी स्मरण कर लिया या जाप कर लिया, एक बार पूजा करली, केवल इससे कल्याण होने वाला नहीं है। प्रभु ने जो कुछ कहा है, उसे समझकर जीवन में आत्मसात् करना, यह महत्त्वपूर्ण है। परमात्मा की आज्ञा को जीवन-व्यवहार में उतारे बिना, दुःख और संसार से छुटकारा संभव नहीं है। अब इसके लिए मार्गदर्शन कौन करे? परमात्मा तो कल्याण-मार्ग बताकर चले गए!
परमात्मा अरिहंत देव के सच्चे प्रतिनिधि हैं, सुगुरु, आचार्य भगवन्। वे ही परमात्मा की आज्ञाओं का मर्म समझा सकते हैं और वे ही इस संसार में कल्याण की राह बता सकते हैं, वे ही अखण्ड सुख, परम आनंद और आत्म-कल्याण की राह पर चलने में सहायक हो सकते हैं। कंचन-कामिनी के त्यागी, मादक-पदार्थों और अन्य व्यसनों से रहित, हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन तथा परिग्रह आदि से मुक्त, परमात्मा की आज्ञानुसार संयम जीवन जीने वाले, निर्दोष भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाले और जगत के जीवों को परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट मोक्ष मार्ग का उपदेश देने वाले गुरुदेव! ऐसे निर्ग्रन्थ रूप से विचरण करने वाले गुरुदेव की निश्राय स्वीकार करें और उनके बताए अनुसार धर्म का आचरण करें।
धर्म से साध्य क्या? परमात्म स्वरूप! अर्थात् पांचों इन्द्रियों की विषय-वासना और क्रोध,मान, माया, लोभ, राग-द्वेष आदि का सर्वथा नाश करना। ऐसे स्वरूप की प्राप्ति के लिए मन-वचन-काया से हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह का त्याग। ऐसे हिंसादि पांच पाप न करना, न करवाना और न अनुमोदना करना। इस प्रकार का आचरण करने के लिए स्वजनों का त्याग करें, घर का त्याग करें, इन्द्रिय निग्रह करें और तपोमय जीवन जीएं।
इस प्रकार का उच्च और संयमी जीवन जीने की जिसमें शक्ति न हो, वह सुदेव-सुगुरु-सुधर्म पर श्रद्धा रखकर यथाशक्ति हिंसा आदि पापों से निवृत्त बने, संयम के अभ्यास रूप श्रावक जीवन के आचरण में प्रयत्नशील बने तथा परमात्मा की आज्ञा में तीव्र रस पैदा करने के लिए परमात्मा का पूजन आदि करे, क्योंकि पाप के त्याग और धर्म के आचरण के बिना सच्ची शान्ति वाला सुख मिलता नहीं है। पाप का भय पैदा हो और धर्म में रस बढे, तभी दुःख मुक्ति और सुख प्राप्ति संभव है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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