शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

कल्याण-मार्ग


दुनिया का हर व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियां करते हुए भी अपना कल्याण चाहता है। धर्मी व्यक्ति धर्म करता है, उसमें भी उसकी भावना अपने कल्याण की है और पापी पाप करता है, उसमें भी उसकी इच्छा तो अपना भला करने की ही होती है। साधु-संतों का भी उद्देश्य अपना कल्याण करने का है। दुनिया में जो-जो जीव इच्छा कर सकते हैं और समझपूर्वक सुख-दुःख का अनुभव कर सकते हैं, वे सभी जीव किसी भी उपाय से अपना कल्याण चाहते हैं और कल्याण की इच्छा से ही सभी प्रकार की प्रवृत्तियां करते हैं। अधिकांश लोग चूँकि अपनी-अपनी समझ व सामग्री के अनुसार प्रवृत्तियां करते हैं, वे सुख-दुःख के वास्तविक स्वरूप और निदान से अनभिज्ञ होते हैं, इसलिए उनकी प्रवृत्तियां प्रायः आत्म-हितकारी नहीं होने से सुखदायी होने की बजाय दुःखदायी ही होती है। स्वरूप को समझने वाले बहुत थोडे लोग ही सही प्रवृत्तियों में लगकर अपना कल्याण साध पाते हैं।
अनंतज्ञानी वीतराग परमात्मा ने कल्याण का सच्चा मार्ग बतलाया है, परन्तु जगत के अधिकांश जीवों को उसका खयाल ही नहीं है। उन तारक परमात्मा के स्वरूप को जानकर परमात्मा के गुणों से रहित नामधारी देवों की सेवा को त्याग कर, एकमात्र राग-द्वेष रहित अनंतज्ञानी परमात्मा को ही परमात्मा के रूप में स्वीकार करना और उनकी आज्ञा के पालन में ही अपनी शक्ति लगाना, इन्द्रियों की वासना और क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष आदि का सर्वथा नाश करना, यही आत्म-कल्याण का सच्चा मार्ग है। दुनिया के नाशवंत पदार्थों में सच्चा व स्थायी सुख देने की ताकत नहीं है। नाशवंत पदार्थों के संयोग से प्राप्त होने वाला सुख, वास्तव में सुख नहीं होता, वह सुखाभास मात्र होता है, क्योंकि नाशवंत पदार्थों के संयोग से प्राप्त सुख भी नाशवंत ही होता है। नाशवंत वस्तुओं के योग से प्राप्त इस सुखाभास में मोहित होने वाले सच्चे सुख को पहचानते नहीं हैं। वे इन नाशवंत वस्तुओं को पाने, भोगने और उनके संरक्षण में इतने अधिक पाप करते हैं कि क्षणिक सुखाभास के बाद भविष्य में वे भयंकर दुःख प्राप्त करते हैं।
इस कारण जो सुख क्षणिक हो और परिणाम से भयंकर दुःखों का कारण हो, उस सुख को कोई भी समझदार व्यक्ति सच्चा सुख नहीं कहेगा। इसीलिए परम उपकारी ज्ञानी भगवंत ने कहा है, ‘संसार दुःखमय है, दुःखफलक है और दुःखपरम्परक है। आत्मा में ही सच्चा सुख रहा हुआ है। जो आत्मा संसार से मुक्त बनती है, वह आत्मा अपने भीतर रहे सुख को प्रकट करती है। वही आत्मा सच्चे और स्थाई सुख को भोग सकती है।अपनी आत्मा को संसार से मुक्त बनाने के लिए परमात्मा ने जो उपाय बतलाया है, उसे हम धर्म कहते हैं। धर्म अर्थात् दुःख मुक्त बनने का तथा आत्मा में रहे अनंत सुख को प्रकट करने वाला कल्याण-मार्ग!-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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