शनिवार, 7 अप्रैल 2012

जहां धर्म नहीं, वहां उन्माद!


जीवन का निर्माण बाल्यकाल से प्रारम्भ हो जाता है। बच्चों को हृदय की पवित्रता का मूल्य उतना नहीं बताया जाता, जितना दूसरी चीजों का बताया जाता है। आज शिक्षा में नैतिक अवमूल्यन की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। हृदय की पवित्रता केवल साधुओं के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं, शासकों और परिवार के सदस्यों के लिए भी बहुत जरूरी है। साधारण व्यक्ति प्रवाह के पीछे चलता है।

यथा राजा तथा प्रजाकहावत ही नहीं, यथार्थ है। जब एक व्यक्ति किसी भी उचित-अनुचित ढंग से सत्ता प्राप्त कर तथाकथित बडा आदमी बन जाता है, तब दूसरा आदमी भी सोचता है कि भ्रष्ट तरीके से पैसा कमाकर बडा आदमी बना जा सकता है। राजनीति जीवन का अंग हो गई है, लेकिन यह जीवन कदापि नहीं है।

सत्ता पर जब धर्म (आदर्श नैतिक मूल्य) का अंकुश नहीं रहता, तो वह निरंकुश हो जाती है। सत्ता राष्ट्र की हो या परिवार की, उस पर से जब-जब धर्म का अंकुश हटता है, तब-तब वह उन्मादी हो जाती है। प्रवाह को वही मोड सकता है, जो असाधारण हो, जो सत्ता और अर्थ प्राप्ति के लिए भ्रष्ट उपायों का सहारा न ले।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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