मंगलवार, 8 जनवरी 2013

किया जैन जगत पर उपकार, खोले संयम के द्वार (3)


पूज्य श्री राम विजय जी को अपने मुनि जीवन के प्रारम्भिक काल में ही विक्रम संवत 1980-81 (सन् 1924-25) में अपने गुरु मुनि श्री प्रेमविजय जी महाराज के साथ अहमदाबाद में लगातार दो चातुर्मास करने का अवसर मिला। इन चातुर्मासों में मुनि श्री रामविजय जी के प्रवचनों के प्रभाव से अहमदाबाद के अनेक होटल बंद हो गए थे। उसी दौरान नवरात्रि में भद्रकाली मन्दिर में होने वाली हिंसा (बकरों का वध) मुनि श्री के प्रवचनों के प्रभाव से बंद हो गई। इस हिंसा के खिलाफ विशाल जन आंदोलन हुआ। इन चातुर्मासों में मुनिश्री ने दीक्षा धर्म की अलख जगाई थी। चूंकि उनके प्रवचनों के प्रभाव से बडे-बडे युवा उद्योगपति, धनकुबेर भी दीक्षा लेने लगे थे तो ऐसी मान्यता बनने लगी थी कि मुनिश्री रामविजयजी बच्चों और युवाओं के सिर पर ऐसी भभूति डालते हैं, जिससे वे दीक्षा लिए बगैर नहीं रहते। इस मान्यता से ही उनके खिलाफ फौजदारी मुकदमों की शुरुआत हो गई। उन्हें पचासों बार कोर्ट में उपस्थित होना पडा, कभी झूठ-कपट का सहारा नहीं लिया और स्वयं उन्होंने अपनी पैरवी कर विजय का डंका बजाया। कालांतर में विरोध और मुकदमें करने वालों के भावों में भी परिवर्तन आया और वे इनसे दीक्षित हुए, यह हृदय परिवर्तन बहुत बडी बात है। मुनि श्री कान्तिविजयजी की माता और पत्नी आदि इसके उदाहरण हैं।

उनकी दीक्षा में बार-बार पैदा हुई बाधाओं से मुनिश्री रामविजयजी ने मनोमन गांठ बांध ली थी कि दीक्षा के संबंध में लोगों के हृदय परिवर्तन की जरूरत है। साधु होने के कुछ ही वर्ष में उन्होंने काफी शास्त्राभ्यास कर लिया और व्याख्यान देने की शुरुआत की। लोग उनकी प्रवचनशैली के कायल हो गए। मुनिश्री रामविजयजी जहां भी प्रवचन करते, वहां भारी भीड जमा हो जाती। व्याख्यान में भी वे एक ही बात को अलग-अलग तरीके से समझाते कि संसार असार है, छोडने जैसा है और साधु बनने जैसा है। सर्वविरतिमय साधु जीवन के प्ररुपण के कारण समाज में अनेक प्रकार की तरंगें पैदा हुई।

मुनिश्री रामविजयजी के अद्भुत् व्यक्तित्व और प्रभावशाली प्रवचनों से आकर्षित युवकों और श्रीमंतवर्ग में भी दीक्षा लेने और साधु बनने के लिए चाह पैदा हुई तो दूसरी ओर शुरुआत से ही दीक्षा का विरोध करनेवाला वर्ग अपने अहंकार और दुराग्रह के कारण और अधिक उग्र बना। मुनिश्री रामविजयजी उनके लिए दुश्मन नम्बर एक बन गए। किसी भी व्यक्ति के दीक्षा लेने के लिए तैयार होने पर विरोधी दीक्षा रोकने के लिए आकाश-पाताल एक कर देते। दूसरी ओर मुनिश्री रामविजयजी की दृढता चट्टान जैसी थी। किसी भी कीमत पर अपने निर्णय पर अमल करने के लिए वे दृढ रहते। इस तरह अपनी हिम्मत से वे किसी को भी दीक्षा दे देते। इसके बाद भी आफतों का अंत नहीं होता था। दीक्षा के विरोधी साधु बनने वाले के परिवार वालों को उकसाकर उनके नाम से कोर्ट में मुकदमे करवा देते थे। इन सभी मुकदमों में मुख्य आरोपी के रूप में मुनिश्री रामविजयजी का ही नाम रहता।

मात्र दीक्षा देने के तथाकथित अपराध के कारण उन पर अनेक केस मुम्बई, अहमदाबाद, बडोदरा और खंभात की अदालतों में चले थे। गवाही देने के लिए उन्हें लगभग 50 बार आरोपी के कटघरे में खडा रहना पडा होगा। फिर भी उन्होंने अपने कदम वापस नहीं खींचे। (क्रमश:)

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