शनिवार, 5 जनवरी 2013

अभक्ष्य पर प्रहार


शास्त्र ही जिनके चक्षु थे, शासन का अनन्य राग जिनके रोम-रोम में व्याप्त था, शास्त्रों की वफादारी ही जिनका जीवन-मंत्र था, चाहे जैसा प्रलोभन देने पर भी जो सिद्धान्त से तनिक भी आगे-पीछे होने के लिए तत्पर नहीं थे, जो विरोध के प्रचण्ड तूफानों में भी त्रिकालाबाधित सिद्धान्तों तथा सनातन सत्यों का ध्वज फहराता रखने वाले थे और वीर शासन के अडिग सैनानी थे; ऐसे 20वीं सदी में जैन धर्म संघ के महानायक, श्रमण संस्कृति के उद्धारक, पोषक, जैन शासन शिरताज, धर्मयोद्धा, व्याख्यान वाचस्पति, दीक्षायुगप्रवर्तक, विशालतपागच्छाधिपति पूज्य आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा  की वाणी में जो सत्व था, जो ओज और प्रखरता थी, चरित्र का जो तेज था, उनकी कथनी-करनी की जो एकरूपता थी, उसी का परिणाम है कि संयम ग्रहण करने के छः-सात साल बाद ही सन 1920 में जब वे पहली बार अहमदाबाद आए और उन्हें पता चला कि अहमदाबाद में अनेक होटल खुल रहे हैं और लोग अभक्ष्य खानपान की ओर मुडते जा रहे हैं तो मुनिश्री ने कहा कि ये होटल तो अतिथि को देव मानकर सत्कार करने का संदेश देने वाली भारतीय संस्कृति पर काले दाग हैं।

होटलों के विरूद्ध तब मुनिश्री रामविजयजी की मुहिम जैनों और जैन उपाश्रयों तक ही सीमित नहीं रही। पहली बार जैन मुनि उपाश्रय के बाहर आए और जगह-जगह उनकी सभाएं होने लगीं। अहमदाबाद के माणक चौक में उस समय बडा मैदान था और रविवार को इस मैदान में मुनिश्री का प्रवचन होने से प्रवचन में इतनी भीड होती थी कि यहां पांव रखने की भी जगह नहीं रहती थी। कई बार तो इतनी भारी भीड होती थी कि प्रवचनकर्ता मुनिश्री को आसन तक पहुंचने में समस्या पैदा हो जाती थी। मुनिश्री के हृदयवेधक प्रवचनों का लोगों के रहनसहन और जीवन पद्धति पर जोरदार प्रभाव पडा। लोगों ने होटलों में खाना-पीना बंद कर दिया और वहां सन्नाटा छा गया। होटल मालिक भी चिन्ता में डूब गए।

अहमदाबाद शहर में इस समय गांधी रोड के नाम से जानाजाता मार्ग पहले रिची रोड के नाम से जाना जाता था और वह अहमदाबाद का एक मात्र राजमार्ग था। रिलीफ रोड तो कई वर्षों बाद बना था। इस रोड पर स्थित लक्ष्मीविलास और चन्द्रविलास होटलों में खानपान के रसिकों की भारी भीड दिखाई देती थी। चन्द्रविलास की चाय तो काफी विख्यात थी। कुछ युवकों को तो इस चाय का नशा न करने तक चैन नहीं मिलता था। ऐसे युवक अब मुनिश्री के प्रवचन नियमित रूप से सुनने लगे और होटल में कदम भी न रखने का संकल्प करने लगे। एक समय चन्द्रविलास होटल में मात्र चाय बनाने के लिए प्रतिदिन 340 लीटर दूध की खपत होती थी। यह खपत घटकर 25-30 लीटर तक आ गई। मात्र 24 वर्ष के मुनिश्री रामविजयजी का ऐसा प्रभाव लोगों के जीवन पर दिखाई दिया। यह उनके अदम्य साहस और ओजस्वी वक्तव्य का ही परिणाम था।

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