सोमवार, 28 जनवरी 2013

अधर्म का खण्डन जरूरी


दीपक यदि काला-सफेद न बताए तो कौन बताएगा? हितैषी यदि सज्जन-दुर्जन की पहचान न कराए तो कौन कराएगा? धर्म में अच्छे-बुरे का विवेक यदि ज्ञानी नहीं समझाए तो कौन समझाएगा?

आज के बात-चतुर मंडन की बातें बहुत करते हैं। वे कहते हैं खण्डन-खण्डन क्या करते हो?’ परन्तु मेरा कहना है कि खण्डन के बिना मंडन नहीं होता। खोदे बिना निर्माण कार्य नहीं होता। थान फाडे बिना कपडे नहीं सिले जा सकते। अधर्म के खण्डन बिना धर्म का मण्डन नहीं हो सकता। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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