शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

कोटिशः वंदन


20वीं सदी में जैन धर्म संघ के महानायक रहे, श्रमण संस्कृति के उद्धारक-पोषक धर्मयोद्धा, जैन शासन सिरताज व्याख्यानवाचस्पति पूज्य आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा को कोटिशः वंदन!

·         जिस महापुरुष ने दीक्षा के प्रथम वर्ष से ही सम्यक्त्व के विषय को अपने प्रवचन का प्रमुख अंग बना लिया था।

·         जिस महापुरुष ने संयम जीवन के आरम्भिक वर्षों में ही शास्त्र-विरूद्ध तथाकथित सुधारवादी विचारधारा का शास्त्रों के आधार पर प्रतिकार किया था।

·         जिस महापुरुष ने देवद्रव्य की रक्षार्थ प्रबल पुरुषार्थ करके अपने जीवन में सिद्धान्त रक्षा की नींव डाली थी।

·         जिस महापुरुष ने अपने समस्त ज्येष्ठ आचार्यदेवों की कृपा दृष्टि प्राप्त करके उनका आंतरिक आशीर्वाद प्राप्त किया था।

·         जिस महापुरुष ने दीक्षा एवं बालदीक्षा के विरूद्ध प्रचण्ड आक्रमणों का शास्त्रोक्त वचनों के द्वारा सामना किया था।

·         जिस महापुरुष को अनेक बार न्यायालयों में खींचा गया, तो वहां भी जैन शासन का डंका बजाकर विजयी हुए।

·         जिस महापुरुष ने अहिंसा का ध्वज फहराकर राजनगर में भद्रकाली मन्दिर में बकरे की बलि को सदा के लिए बंद करवाया था।

·         जिस महापुरुष ने अपनी वाणी के प्रभाव से व्यसनों तथा अभक्ष्य खान-पान के विरूद्ध जनसमूह को जागृत किया।

·         जिस महापुरुष ने अनेक मुनि सम्मेलनों में सिद्धान्तों की रक्षार्थ गुरुजनेेेें की ओर से सौंपे हुए उत्तरदायित्व को सफलतापूर्वक वहन किया।

·         जिस महापुरुष ने तिथि चर्चा में शास्त्रीय प्रमाणपूर्वक सिद्ध करके सन्मार्ग की पुनः स्थापना करके संघहित का एवं सिद्धान्त का एक ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत किया।

·         जिस महापुरुष ने अपने जीवन में परमात्मा की आज्ञा, शास्त्र वचनों एवं गुरुजनों की विशुद्ध परम्परा की रक्षार्थ संघाचार्य जैसी सर्वोच्च उपाधि के प्रचण्ड प्रलोभन की ओर तनिक भी न खींचे जाकर परम् निःष्प्रहता के दर्शन कराए।

·         जिस महापुरुष ने अपने कट्टर विरोधियों एवं शत्रुता रखने वालों के प्रति भी हृदय में तनिक भी दुर्भावना उत्पन्न होने नहीं दी और उनकी आत्मा का हित सोचकर क्षमाश्रमणउपाधि को सार्थक किया।

·         जिस महापुरुष में प्रश्नकर्ता के भाव जानने की अद्भुत् कला थी। प्रवचन सभा में प्रश्नों के समाधान देने की उनकी लाक्षणिक शैली थी। वे प्रश्न का जवाब प्रश्नकर्ता के उद्देश्य को ध्यान में लेकर देते थे। यदि कोई जिज्ञासा भाव से प्रश्न करता तो उसका जवाब बहुत ही सुन्दर तरीके से समझाकर देते थे, लेकिन यदि प्रश्नकर्ता का उद्देश्य वातावरण को बिगाडने का ही होता, तब पूज्यश्री का जवाब भी ऐसा होता कि सामने वाले की बोलती बंद हो जाए। सचमुच उनमें प्रश्नकर्ता के भाव को परखने की अद्भुत् कला थी।

·         जिस महापुरुष ने छोटे-बडे, राजा-रंक, निर्धन-धनी, सेठ-नौकर, भक्त अथवा निंदक प्रत्येक पर समान रूप से हित-शिक्षा, आशीर्वचनों एवं वात्सलय की वृष्टि करके करुणासागरविरुद को सार्थक किया।

·         जिस महापुरुष ने भयंकर अशाता एवं वेदना के समय भी श्री अरिहंत पद के ध्यान के द्वारा समाधि की उच्च कक्षा को सिद्ध करके व्याधि का भी सवागत करके आत्मोपकारक बना देने की अद्भुत् कला का विश्व को उपहार दिया।

ऐसे जैन शासन सिरताज धर्मयौद्धा व्याख्यानवाचस्पति पूज्य आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा को कोटिशः वंदन !

नोट- अब हम कल पहुंचेंगे गांधार, जहां होने वाले 11 दिवसीय समारोह का हम बताएंगे आपको पल-पल का हाल! जहां जीवंत होंगे इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ !

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