विपत्ति आने के बाद जागृत
होने के बजाय पहले ही जागृत हो जाओ। पहले ही सावधान हो जाओ तो फिर तुम्हें कष्ट ही
नहीं आएगा। आग लगने के बाद कुंआ खोदने की सोचे तो वह समझदार पुरुष माना जाता है
क्या? नहीं! समझदार पुरुष तो वह माना जाता है, जो बाढ आने से पहले ही पाल बांध लेता है। तो यह शास्त्रीय
संकेत है कि हम अपना मूल स्वरूप देखें। चेतना का बोध प्राप्त करें। अन्तर-बोध को
प्राप्त करें। जो आत्मा संसार में आसक्त नहीं है, जिसे संयम से प्रीति है, वह आत्मा दुःखों से बचकर रहती
है। लेकिन, इस प्रकार की स्थिति बने कैसे? कब हम असंयम से निवृत्त हो सकेंगे? जब हमारा यह प्रयत्न रहेगा कि हम जितना-जितना हो सके पाप
कार्यों से बचकर रहने का प्रयास करें। एक बार हमें आत्मा का बोध प्राप्त हो गया, तो फिर जीवन की दिशा,
जीवन की सारी गति ही
बदल जाएगी। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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