धर्मतीर्थ की स्वयं आराधना
करना, धर्मतीर्थ की आराधना करवाने के लिए दूसरों के सहायक
बनना, धर्मतीर्थ के प्रति लोग आकर्षित हों ऐसी कार्यवाही
करना और करवाना, योग्य आत्माएं धर्मतीर्थ की
शरण को प्राप्त करें और धर्मतीर्थ की सेवा में स्थित हों; ऐसी योजनाओं को कार्यान्वित करना, अज्ञानियों और द्वेषियों आदि की ओर से धर्मतीर्थ के संबंध
में प्रसारित किए गए गलत खयालों को रोकने में अपनी शक्ति, सामग्री का उपयोग करना और ऐसे उत्तम कार्य करने वालों की
अनुमोदना करना, ये सभी आत्मोद्धार करने की
रीतियां हैं। आत्मोद्धार करने की भावना रखने वाले को संभावना के अनुसार ये सभी
कार्यवाही करनी जरूरी है; लेकिन यह सब कब होगा? धर्मतीर्थ के प्रति सच्चा भाव प्रकट हो तब! जिस आत्मा के
अन्तर में तीर्थ का सच्चा स्वरूप जंच गया हो,
जो आत्मा सच्चे तीर्थ
के प्रति भक्तिभाव रखने वाली बन गई हो और जो आत्मा तीर्थ की सेवा द्वारा अपनी
आत्मा का निस्तार (मुक्ति) साधने की अभिलाषा रखने वाली हो, वह तीर्थ सेवक के रूप में पहिचानने योग्य है। अल्पसंसारी
आत्माओं के अंतर में ही तारक तीर्थ का वास्तविक स्वरूप जंचता है। जिसके अंतर में
तारक तीर्थ का वास्तविक स्वरूप जंचे,
उसके अंतर में सच्चे
तीर्थ के प्रति भक्तिभाव पैदा न हो,
ऐसा हो ही नहीं सकता। -आचार्य
श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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