गुरुवार, 4 जुलाई 2013

सामुदायिक यात्रा का महत्त्व


सामुदायिक यात्रा का आयोजन करने से जो अनेक लाभ होते हैं, उनमें सबसे खास लाभ तो यह कि सैंकडों आत्माओं के लिए जिनपूजन का आयोजन और सद्गुरु द्वारा जिनवाणी के श्रवण का आयोजन बहुत अच्छी तरह से निश्चित किया जा सकता है। इसके परिणाम स्वरूप धर्म से अपरिचित आत्माएं भी धर्म से परिचित हो जाते हैं और जो धर्म से परिचित आत्माएं हैं, वे अपने-अपने सम्यग्दर्शनादि गुणों की निर्मलता और दृढता आदि को प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार आत्म-गुणों के विकास का एक अभिक्रम चलता है। संघ-समाज में आध्यात्मिक समरसता का माहौल बनता है और इसके कई मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं। सामुदायिक तीर्थयात्रा आयोजन के संबंध में परम तारक श्री जैन शासन की उत्तम प्रकार की प्रभावना के योग से अनेक आत्माएं धर्म-सन्मुख और धर्म-स्थिर बन जाते हैं। तीर्थयात्रा के लिए जाने वाला समुदाय, अपने औदार्य और त्याग से सुशोभित बर्ताव से भी अनेक आत्माओं के अंतर में धर्म-जागृति प्रकट कर सकता है। पर्वत आदि स्थानों पर उत्तम कोटि के मन्दिरों की स्थापना पूर्वपुरुषों ने की है। इनमें कुछ स्थान तो ऐसे हैं, जहां पर अनंतानंत पुरुषों ने आत्म-साधना कर के मुक्ति प्राप्त की है। जो संसारी लोग आधि-व्याधि और उपाधि से घिरे हुए हैं, वे भी ऐसी भूमि पर आकर निवृत्ति प्राप्त करें और रत्नत्रयी की आराधना के सन्मुख हो जाएं, इस हेतु से तीर्थयात्रा की महिमा विशेष है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें