गुरुवार, 13 जून 2013

धर्म स्थानों में शादी-पार्टियां न हों


खराब स्थान का अच्छा उपयोग हो सकता है, किन्तु अच्छे स्थान का खराब उपयोग कदापि नहीं हो सकता। उपाश्रय में कहीं अर्थ और काम की मंत्रणा होती है? आज अर्थ और काम की इतनी ज्यादा वांच्छा बढ गई है कि लोग धर्म स्थानों को भी अर्थ-काम की साधना में लगा रहे हैं। उपाश्रय में तो सिर्फ और सिर्फ धर्म-क्रिया ही होनी चाहिए, धर्म की ही बातचीत होनी चाहिए, धर्म का ही विचार होना चाहिए; किन्तु यहां तो शादी-ब्याह और पुत्र-पौत्र के जन्म-दिन मनाए जा रहे हैं, यह कितनी हैरानी और दुःख की बात है? बनवाने वाले ने तो धर्म-क्रिया के लिए स्थान बनवाया, किन्तु आज के उसके हकदार उनकी भावनाओं पर ही छीणी-हथौडा मारने के लिए तैयार हैं। इनके जाल में फंसने वालों को औचित्य का त्याग नहीं करना चाहिए, अपितु पूरी दृढता से कहना चाहिए कि यहां तो सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषधादि धर्म-क्रिया होती है। श्री जिनवाणी का श्रवण हो, धार्मिक विचारों का आदान-प्रदान हो, मोक्ष के ध्येय को सिद्ध करने वाली क्रियाएं यहां हो सकती हैं; किन्तु संसार को बढाने वाली क्रियाएं तो यहां हर्गिज नहीं हो सकती हैं। स्थान का दुरुपयोग करने वालों को अपनी पूरी शक्ति-सामर्थ्य लगाकर रोकना ही चाहिए। दुर्भाग्य से आज घर और बाजार से धर्म की बातें निकल चुकी हैं। अब उपाश्रयों से भी धर्म निकालना चाहते हैं क्या? श्री जिनमन्दिर और उपाश्रयों की पवित्रता का नाश करना चाहते हैं क्या? धर्म के अर्थियों को सावधान होना चाहिए। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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