लोकवाद की शरण में रहने से
धोबी के कुत्ते जैसी दशा होती है। ‘धोबी का कुत्ता न घर का न घाट
का’, उसी प्रकार लोकप्रवाद की शरण में रहने वाला स्वयं न
तो अपना सुधार कर सकता है और न दूसरों का सुधार कर सकता है, उसकी तो दोनों ओर अवगति ही होती है। लोक की गति हवा जैसी है, लोग हवा के प्रवाह के साथ चलते हैं। पवन एक दिशा में नहीं
बहता है, उसी प्रकार लोग भी एक दिशा का आग्रह नहीं रखते हैं।
वे तात्कालिक रूप से सुविधावादी होते हैं। उनको जिस प्रकार का निमित्त मिल जाता है, उसी में ढल जाते हैं। वे प्रायः अनुस्रोतगामी होते हैं और
बहाव के साथ बहते हैं। लोकप्रवाद प्रमुखतः हिताहित और तथ्यातथ्य आदि के विवेक पर
निर्भर नहीं होता है। इसीलिए कहा जाता है कि केवल लोकवाद के ऊपर से किसी वस्तु का निष्कर्ष
निकालना, यह मूर्खता है। लोक में भी कहा जाता है कि ‘दुनिया झुकती है,
झुकाने वाला चाहिए’, इसी कारण से इस दुनिया में भयंकर दुराचारी भी आडम्बर से
पूज्य माने जाते हैं। दम्भी कुशल हो और उस प्रकार के पुण्य वाला हो तो वह लगभग
सम्पूर्ण दुनिया को भी बेवकूफ बना सकता है। इसलिए हवा के साथ नहीं, अपने विवेक से जिनाज्ञा को सामने रखकर चलें। -आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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