बुधवार, 26 जून 2013

निर्मल श्रद्धा ही सुखकारी


वर्तमान में सुख का अनुभव करने के साथ ही, भावीकाल को भी सुखमय बनाने का एकमात्र यही मार्ग है कि अनन्तोपकारी, अनंतज्ञानी श्री जिनेश्वरदेवों द्वारा प्रतिपादित यथावस्थित मुक्तिमार्ग के प्रति निर्मल श्रद्धा धारण करो और इस मार्ग की आराधना में ही दत्तचित्त बनो। जो निर्दोष और उसके उपरांत अनुपम सुख का अनुभव छः खण्ड के अधिपति चक्रवर्ती भी नहीं कर सकते और देवों के अधिपति इन्द्र भी नहीं कर सकते हैं, उस सुख का अनुभव सच्चे निर्ग्रन्थ कर सकते हैं। साधु साधुपन को प्राप्त हो तो जितने अंश में साधुपन की सुन्दरता होगी, उतने ही अंश में वह सुख का अनुभव कर सकता है। आज्ञाविहित मार्ग में समभाव से मस्त रहने वाले को बाह्य कारण दुःख उत्पन्न नहीं कर सकते। चक्रवर्ती या इन्द्र आदि को ऐसा समाधिसुख, इन्द्रत्व या चक्रवर्तीत्व से भी संभव नहीं है। आहार मिले, न मिले, मान मिले या अपमान, स्वागत हो या तिरस्कार, दोनों स्थितियों में पुण्य-पाप के उदय को समझने वाला समभाव में ही रहता है, यह सुख कोई सामान्य कोटि का नहीं है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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