रविवार, 2 जून 2013

यह स्वतंत्रता नहीं, स्वच्छंदता है


जिन नारियों को अपना शील-सतीत्व प्यारा है, उन्हें सती अंजना को अपना आदर्श बनाना चाहिए। लेकिन, इसके विपरीत आज के स्वच्छंदी लोगों ने दुष्ट वासनाओं के कारण विभिन्न प्रचार माध्यमों से ऐसी भयानक भावनाओं का प्रचार किया है, जिससे नित्य अनेक नारियों के शील नष्ट हो रहे हैं। यदि आत्मा को दुर्गति से बचाना हो और अपने शील की रक्षा करनी हो तो वर्तमान नारियों को अपना जीवन मर्यादित बनाने के पूर्ण प्रयास करने चाहिए। जो स्त्रियां आज इच्छानुसार व्यवहार करने की, इच्छानुसार मनुष्यों से परिचय बढाने की और किसी भी समय चाहे जहां जाने-आने आदि की जो स्वतंत्रता की बातें करती हैं, वह स्वतंत्रता नहीं, स्वच्छन्दता है, वे सचमुच दुराचार को निमंत्रण देना चाहती हैं। अतः ऐसे प्रचार माध्यमों और ऐसी स्त्रियों के संसर्ग से दूर रहना चाहिए। स्त्रियों को अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए, इसके लिए प्रेरणा प्राप्त करने हेतु महासती अंजना का जीवन चरित्र अत्यंत ही उत्तम है। शीलवान् स्त्रियों के लिए स्वच्छन्द आचरण करना तो सचमुच शील का भरे बाजार में नीलाम करने जैसा है। यह कुलीन स्त्रियों के लिए कतई उचित नहीं है। अपने शील की रक्षा के लिए स्त्रियों को मर्यादित रहना चाहिए। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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