विषय और कषाय की अधीनता कितनी
भयंकर वस्तु है? विषय-कषाय की अधीनता ने जगत
में कौनसे-कौनसे अनर्थों को उत्पन्न नहीं किया?
विषय-कषाय की अधीनता
ने भाई-भाई के बीच में, बाप-बेटों के बीच में, पति और पत्नी के बीच में कितने-कितने झगडे पैदा किए हैं? विषय-कषाय की अधीनता का अस्तित्व नहीं हो तो झगडों का
अस्तित्व भी कहां से होगा? इसका विचार तो करो! कोई
कुटुम्ब ऐसा बताओगे कि जिस कुटुम्ब में किसी भी समय अर्थ-काम की रसिकता से अथवा
विषय-कषाय की अधीनता से झगडा उत्पन्न न हुआ हो या युद्ध क्रीडा नहीं हुई हो? भाग्य से ही कोई कुटुम्ब ऐसा मिलेगा? तब, इस प्रकार के झगडे क्या घर के
बाहर भी कम होते हैं? ऐसा होने पर भी ‘धर्म के नाम पर ही अधिकांशतः झगडे हुए हैं’, इस प्रकार मिथ्या भ्रम फैलाया जाता है तो इसके पीछे मकसद
क्या है? धर्म के प्रति तीव्र अरुचि और धर्मनाश की भावना का
ही इसमें संकेत मिलता है न? यह ठीक नहीं है और ऐसे
दुष्प्रचार को पूरी दृढता से रोकना चाहिए। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें