रविवार, 30 जून 2013

बलिदान देकर भी धर्म की रक्षा करें


धर्म के ऊपर आफत आए और वीतराग नहीं बने हुए धर्मी बाह्य समता से चिपके रहें, यह उचित नहीं है। फिर भी यदि ऐसी बाह्य समता चिपक जाए तो उसका अर्थ होगा कि उस आत्मा के अन्तर में मोक्ष मार्ग के प्रति जैसा चाहिए वैसा राग अभी प्रकट हुआ ही नहीं है। स्वयं अशक्त हो और आक्रमण का सामना कर सके, ऐसी हालत न हो तो बात अलग है। सत्व के अभाव में कदाचित् सच्चा व्यक्ति भी प्रकट में न बोल सके, यह संभव है, किन्तु सच्चा राग होगा और उसके अन्तर में जलन नहीं होगी, यह संभव नहीं है। जिस वस्तु पर राग होता है, उस वस्तु की लूट रागी सहन नहीं कर सकता है। जिस वस्तु को आत्मा तारक मानती है, उस वस्तु के ऊपर आफत आए तो वह सहन नहीं कर सकती है। धर्म के रागी में प्रशस्त कषाय का उत्पन्न होना पूर्णतः स्वाभाविक है। सच्चा धर्मी दुनिया में संरक्षण करने योग्य एक मात्र मोक्ष मार्ग को ही मानता है, इसलिए वह पौद्गलिक ऋद्धि चली जाए तो इसे भाग्याधीन मान लेता है और स्वयं की निन्दा हो तो अपने अशुभ कर्म का उदय मान लेता है और समता रख लेता है, किन्तु मोक्ष मार्ग पर आफत आए तो वह इसे बर्दाश्त नहीं करता, अपना सम्पूर्ण बलिदान देकर भी वह उस आफत को टालने का प्रयास करता है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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