एकान्त हितकर मार्ग के प्रति
भी वे ही लोग सुश्रद्धालु बन सकते हैं,
जो सुन्दर भवितव्यता
को धारण करने वाले होते हैं। सन्मार्ग के प्ररूपक सद्गुरु का योग प्राप्त होना, यह बहुत ही कठिन है। और प्राप्त हुआ योग भी फलदायी होना, यह तो उससे भी अधिक कठिन है। सन्मार्ग की रुचि उत्पन्न होने
में लघुकर्मिता परमावश्यक वस्तु है। परन्तु,
ऐसे भी जीव इस संसार
में विद्यमान हैं, जो जीव सद्गुरु के कथन की
हंसी उडाने में ही आनंद मानते हैं। ऐसे जीवों को सन्मार्ग का कथन फलेगा किस प्रकार
से? आज का वातावरण तो देखो। आज सद्गुरुओं के वचनों की
मजाक करना, यह तो सामान्य बात हो गई है। ऐसे को सद्गुरु का योग
सफल हुआ या फूट गया? ऐसे लोगों का भविष्य तो निःसंदेह
अंधकारमय और दुःखमय ही है।
आज कितने ही जीव सन्मार्ग के
आराधकों को त्रास देने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। स्वयं से आराधना नहीं होती हो
तो दूसरों की आराधना में विघ्नकर क्यों बनना चाहिए? ये एकदम झूठे लोग भी विरोध करने की धुन में आज क्या लिख रहे हैं और क्या बोल
रहे हैं? समाज-हित के नाम से ऐसी धमाल हो सकती है? तूफान स्वयं मचाना और दोष साधुओं को देना, इसका क्या अर्थ है?
जिनमें प्रामाणिकता
नाम की कोई चीज नहीं, वे गाली और कलंक न दें तो
क्या करें? उनका मकसद एक ही है कि लोगों को किसी भी प्रकार से
धर्मस्थानों में आने से रोकना। इस रीति से धर्म के सामने उत्पात मचाने वालों का हम
भले ही बुरा न चाहें, उनका भी कल्याण हो, यही अभिलाषा है;
परन्तु उनके पाप से
उनका बुरा न हो, यह संभव नहीं है। -आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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