यदि आप थोडा-सा भी समझदार बनकर सोचें तो आपको अपनी
वर्तमान स्थिति में तो अत्यंत सरलता से निर्वेद उत्पन्न हो सकता है। सुख मनचाही
वस्तु होने से सुख के समय में निर्वेद उत्पन्न होने जैसा विचार आना थोडा कठिन है, परन्तु दुःख जैसी अनचाही वस्तु के
समय तो निर्वेद उत्पन्न होने जैसा विचार आना अत्यंत सरल होता है। परन्तु भिखारी
जिस तरह केवल एक टुकडा रोटी का प्राप्त करने पर भी प्रसन्न हो जाता है, उसी तरह दुःख अधिक हो और सुख अल्प
एवं तुच्छ हो तो भी उतने से ही प्रसन्न होने वाले अधिक होते हैं।
भिखारी यह नहीं देखता कि उसे एक रोटी के टुकडे के लिए
कितनी अनुनय-विनय करनी पडी है। वह तो केवल इतना ही देखता है कि उसे रोटी का टुकडा
प्राप्त हो गया और उसे प्राप्त कर वह इतनी प्रसन्नता अनुभव करता है कि घडी भर के
लिए तो वह अन्य सभी कष्टों को भूल-सा जाता है। जिसकी संसार के सुखों के संबंध में
ऐसी मनोदशा हो, उसे
निर्वेद उत्पन्न होने जैसा विचार आए भी कैसे?
बाकी तो आप यदि प्राचीन काल के
पुण्यशालियों के सुख का वर्णन सुनो और उनके सुख की आपके वर्तमान सुख से तुलना करो
तो भी आपका अपने सुख का सारा आनंद हवा हो जाए और आपकी इच्छा संसार-सुख त्याग कर
मोक्ष-सुख प्राप्त करने की हो जाए।
ये सब निमित्त हैं,
परन्तु आप में उस प्रकार की
योग्यता हो अथवा आप में ऐसी योग्यता आए तो ही ये निमित्त आपको वैराग्य की ओर
प्रेरित करने वाले और वैराग्य होने पर आपको धर्माराधक बनाने में सहायक सिद्ध
होंगे।-सूरिरामचन्द्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें