जीवन के अंतिम समय
में और विशेषतया आयुष्य कर्म के बंध के समय में तो जीव को अत्यंत सावधानी रखनी
चाहिए, परन्तु व्यक्ति के पास इस जीवन काल का कोई सुनिश्चित
माप तो है नहीं कि जिसमें कभी भी परिवर्तन होगा ही नहीं। आपको वास्तविक ध्यान है
क्या कि आप कितने वर्षों तक जीवित रहने वाले हैं या आपका आयुष्य कर्म का बंध कब
होने वाला है? नहीं! इसीलिए हमें सदा सावधान, सावचेत रहना चाहिए।
कदाचित् उसका वास्तविक ध्यान हो और अमुक आयु तक तो आप जीवित रहेंगे ही, यह विश्वास हो तो भी पहले से ही सचेत होकर जीवन-यापन
का प्रयास करना चाहिए कि जिससे उत्तरावस्था में सावधानी रखना सरल हो।
जीवन के पूर्वार्द्ध
में पाप-कर्म-रत रहने वाले अपना उत्तरार्द्ध जीवन सुधार ही नहीं सकते, ऐसी बात नहीं है; परन्तु अपने जीवन के
पूर्वार्द्ध को पाप कर्मों में रत रहकर व्यतीत करने वालों को अपने जीवन के
उत्तरार्द्ध को सुधारने में अत्यंत कठिनाई होती है। जब जीवन के पूर्वार्द्ध में
अनेक कुटेवें (बुरी आदतें) पड गई हों, असद् आचार-विचारों
के अभ्यस्त हो गए हों, तब उत्तरार्द्ध में सदाचार एवं सद्विचारों की इच्छा
सफल करने में अत्यंत परिश्रम करना पडता है और पिछले जीवन में किए हुए पापों का फल
तो अवश्य ही स्वयं को भुगतना पडता है। अतः जब से होश संभालो तब से सभी को सचेत
होकर जीवन यापन करने का प्रयत्न करना चाहिए।
सचेत होकर जीवन यापन
करने के लिए संसार के प्रति विरक्ति एवं विशुद्ध मुक्ति-मार्ग अपनाने की अभिलाषा
रखनी चाहिए और दिन प्रतिदिन वह अभिलाषा प्रबलतर होती जाए, बलवती बने, ऐसे संसर्ग में रहना
चाहिए। साथ ही साथ द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी, इन तिथियों के दिन
तो धर्माराधना में अधिकाधिक प्रयत्नशील होना चाहिए। इस तरह सचेत होकर यदि जीवन
यापन किया जाए तो जो परभव का आयुष्य बंध होगा, वह शुभ गति का होगा।
यहां से मृत्यु होने के पश्चात जहां हम जाएं, वहां भी यदि
धर्माराधना चलती रहे अथवा हमारा विवेक जागृत रहे तो हमारी भव-परम्परा सुन्दर होकर
हमारा जीव अल्पकाल में ही परम मुक्ति प्राप्त कर ले।
इस जीवन का जो समय
व्यतीत हो गया वह तो हो गया, परन्तु अब तो हमें सावधान होकर जीवन यापन करना चाहिए
न? अब भी यदि हम सचेत हो जाएं और सचेत होकर जीवन यापन करें तो हमारा पर-भव सुधर
सकता है। यदि पर-भव का आयुष्य बंध नहीं हुआ होगा तो शुभ गति और आयुष्य का बंध होगा
और कदाचित यदि पर-भव की आयु का अशुभ बंध हो गया होगा तो भी यदि अभी से सचेत होकर
जीवन यापन किया जाए तो उससे लाभ ही होगा। इस भव की सावधानी से अन्य भवों की
सावधानी भी सुलभ हो सकती है।-सूरिरामचन्द्र
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