प्रत्येक वस्तु हृदय
में अपनी स्वयं की योग्यता के अनुसार ही परिणाम प्राप्त करती है। एक ही वस्तु का
योग्य व्यक्ति के हृदय में जो परिणाम होता है, अयोग्य व्यक्ति के
हृदय में उसी वस्तु का विपरीत परिणाम होता है। आज ऐसे अनेक मनुष्य मिलते हैं कि जो
अपने स्पष्ट दोष भी दोष नहीं समझते। भूलकर भी यदि कोई उनके दोष की आलोचना करडाले
तो वे उसकी सातों पीढ़ियों की झूठी-सच्ची बातों का कच्चा चिट्ठा खोले बिना नहीं
रहेंगे। अपने दोष के विषय में कही गई बात को सहन करने की इतनी अधिक असमर्थता होती
है कि बात करने वाले के लिए चाहे जैसा कहने में भी वे नहीं हिचकिचाते। उसमें जो
दोष न हों वे भी उसके सिर मढे बिना उन्हें चैन नहीं पडता। कई बार तो ऐसे लोग
गाली-गलोज और मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे मनुष्य जीवन में यथोचित विकास
नहीं कर सकते, ऐसे मनुष्य यथार्थ
में तो बोध देने के लिए भी अयोग्य ही कहे जाएंगे।
यदि, जो दोष हम में न हों, उनकी केवल कल्पना
करके ही वे दोष हम पर कोई लगाए, तो भी वह बात सुनकर आनंद आना चाहिए; इसके विपरीत सर्वथा
सत्य दोष यदि कोई बताए तो भी उन्हें छिपाने की चालाकी-कुटिलता की जाए तो फिर अपने
दोष कैसे मिट सकेंगे?
किसी के दोषों की
बात कहने वाले को खूब सोच-समझकर ही दोषों के विषय में कहना चाहिए। दोष हों, वे भी
कब, किसे, कहां और किस तरह कहे जाएं, इस बात का विचार
अवश्य करना चाहिए; परन्तु गुण प्राप्त करने की भावना वाले व्यक्ति को तो
अपने दोषों के विषय में सुनने के लिए तत्परता बतानी चाहिए। आप लोग यदि धर्म गुरुओं
के समक्ष अपने दोष छिपाने की और जो गुण स्वयं में न हों, उन्हें बताने की
कुटिलता करो, तो आपको लाख धर्म गुरु मिलें तो भी आपका उद्धार कैसे
हो सकता है? ऐसे मनुष्य तो उल्टे धर्म-गुरुओं को समझाने लग जाते
हैं, स्वयं नहीं समझेंगे। आप लोग क्या यह मानते हैं कि आप सब गुणवान जीव हैं? यदि नहीं, तो आप में अपने
दोषों के विषय में सुनने की कितनी शक्ति है? कितना सामर्थ्य है? आप प्रवचन में भी
अपनी प्रशंसा सुनने के लिए आते हैं अथवा आपको अपने दोष ध्यान में आ जाएं और दोष
पहचानकर आप उन्हें मिटाने का प्रयत्न कर सकें, इसलिए आते हैं? प्रवचन समाप्त होने
पर जिस दिन आपको अपना एक भी दोष नजर नहीं आए, उस दिन आपको ऐसा
लगता है क्या कि ‘आज तो मुझे अपना कोई दोष नहीं मिला, जबकि मुझ में अनेक
दोष भरे पडे हैं, किस प्रकार मैं अपने दोषों को खींच-खींचकर निकालूं, किस कमी के कारण आज
मैं अपना अंतरावलोकन पूरी तरह नहीं कर सका।’ आपके हृदय में
ऐसे-ऐसे विचार आते हैं क्या? इसी प्रकार गुणों को ग्रहण करने के विषय में भी विचार
आने चाहिए।-सूरिरामचन्द्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें